दान/ भेंटादि में ‘एक’ अधिक (जैसे 11,101) क्यों देते हैं ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी → तब यह संख्या अविभाज्य हो जाती है। ‘एक’ का सिक्का रखना चाहिये, धातु से ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है (बढ़ता है)। दुःख के अवसरों पर 10,100 दिये जाते हैं, जो भाज्य हैं।

मुनि श्री विनम्रसागर जी

जन्म/ मरण में अच्छा/ बुरा लगने से सूतक लगता है।
अच्छा/ बुरा लगने से सुख/ दु:ख होता है। सुखी/ दु:खी होने से शरीर में रिसाव होता है जैसे स्वादिष्ट पदार्थ की याद आते ही मुंह में पानी/ रिसाव आने लगता है। रिसाव से शरीर में अपवित्रता होती है, इसलिये भी सूतक लगता है।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

आभूषण में सोने और खोट की पहचान करना भेद विज्ञान है। महत्व सोने का ही नहीं, खोट का भी होता है क्योंकि खोट के बिना आभूषण बन ही नहीं सकता। जैसे खलनायक के बिना नायक की पहचान नहीं।

बुद्धिमत्ता विद्वत्ता में अंतर ?

सुमन

बुद्धिमत्ता में बुद्धि की प्रमुखता, विद्वत्ता में बोधि(विवेकपूर्ण ज्ञान)की प्रमुखता रहती है।

चिंतन

जो जवान था,
वह बूढ़ा होकर,
पूरा* हो गया।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

(*सिर्फ उम्र पूरी करके पूरा होना है या गुणों से परिपूर्ण होकर पूरा होकर जाना है!- श्री कमल कांत )

शांति के लिये –>
1. अभिलाषा छोड़नी होगी।
2. समता धारण।
3. व्यापकता।
4. निस्वार्थता।
5. पारमार्थिक शांति के लिये सर्वलोकाभिलाषा का त्याग।

क्षु. श्री जिनेन्द्र वर्णी जी (शांतिपथ प्रदर्शक)

क्षमता कैसे बढ़ायें ? (युवा ने आचार्य श्री विद्यासागर जी से पूछा। उस सभा में गृहस्थ, ब्रम्हचारी तथा मुनिगण भी थे)।
सो आचार्य श्री का एक उत्तर सबके लिये होना था।
आ. श्री –>
1. लोक-संपर्क से बचो।
(युवा की पढ़ाई सही होगी, गृहस्थ के घर की बात बाहर नहीं जायेगी, व्रतियों की साधना अवरुद्ध नहीं होगी)।
2. Over Working से बचो।
3. शिथिलता लाने वाले साधनों से बचो।

मुनि श्री विनम्रसागर जी

Archives

Archives

April 8, 2022

March 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
24252627282930
31