प्रत्यक्ष से ज्यादा उसकी कल्पना में आनंद आता है। कल्पना का अंत नहीं, साक्षात दर्शन के बाद अंत आ जाता है।
मूर्ति के निमित्त से मूर्तिमान की कल्पना में भक्त खोया रहता है।
क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी
आँखों का बंधन, पैरों का मर्दन, पेट के लंगन का यदि उल्लंघन किया तो निरोग कैसे रहोगे !
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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गन्ने में जहाँ गाँठ होती हैं, वहाँ रस नहीं होता…!
जहाँ रस होता हैं, वहाँ गाँठ नहीं होती…!
बस जीवन भी ऐसा ही है,
यदि मन में किसी के लिए नफ़रत की गाँठ होगी,
तो हमारा जीवन भी बिना रस का बन जाएगा…!
जीवन का रस बनाए रखना हो तो….
नफ़रत की गाँठ को निकलना ही होगा…! 🚩
🌹🌹🌷🌹🌹🌷🌹🌹
(सुरेश)
“Kindness is like snow. It beautifies everything it covers.”
— Khalil Gibran
ग़लतियाँ भी मान्य क्योंकि उनके साथ क्षमा मांगना/ प्रदान करना जुड़ा रहता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
गुरु के प्रति समपर्ण/ अर्पण* करने पर वे दर्पण बन जाते हैं, जीवन पर्यंत के लिये।
उनके जीवनकाल में ही नहीं, उनके न रहने पर भी।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* राग सहित झुकाव
गुरु → पिल्ले को 1 सप्ताह के लिए अपने पास रखा था। पर वह तो बार-बार भाग जाता था।
तब उस पिल्ले की खूब सेवा की, उसके साथ ज्यादा समय बिताना शुरू किया। अब पिल्ला भाग-भाग कर घर वापस आने लगा।
भगवान की सेवा/ अधिक समय देना शुरू करो। मन में उनकी खुशबू बस जायेगी।
(धर्मेंद्र)
दावतों में Costly Items परोसने के लिये कहा जाता है → ढीले हाथ से मत परोसना।
शब्द भी बहुत कीमती हैं, उन्हें ढीले हाथ(लापरवाही/ खुले हाथ) से नहीं देना(बोलना) चाहिये।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
जो मात्र किताबी शिक्षा दे, वह शिक्षक। इनसे पढ़ने वाले छात्र कहलाते हैं। ये शिक्षा Career/ पैसा कमाने के लिये।
गुरु शिक्षा के साथ Implementation सिखाते/ जीवन बनाते हैं। इनसे पढ़ने वाले शिष्य कहलाते हैं। गुरु अपने अनुभव से पढ़ाते हैं। इसीलिये बच्चों को गुरु से Attach करना चाहिये।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
श्रावकों (गृहस्थ) का धर्म नैमित्तिक (पर्व/उत्सव) होता है;
साधुओं का हर समय।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
शिष्य जो गुरु चरणों में चढ़ जाये, यानी गुरु दर्शन करके लौट न पाये।
भक्त गुरु दर्शन करके लौट जाये।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
ख़ामोशी हर सवाल का बेहतरीन जबाब है।
और मुस्कुराहट हर हालात की बेहतरीन प्रतिक्रिया।
(सुरेश)
जो ज्ञानी हैं वो कभी विचलित नहीं हुआ करते हैं जैसे सूर्य में चाहे जितना ताप हो वह समुद्र को सुखा नहीं सकता है।
A Mistake increases your experience & experience decreases your mistakes.
You learn from your mistakes then others learn from your success.
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