जो मात्र किताबी शिक्षा दे, वह शिक्षक। इनसे पढ़ने वाले छात्र कहलाते हैं। ये शिक्षा Career/ पैसा कमाने के लिये।
गुरु शिक्षा के साथ Implementation सिखाते/ जीवन बनाते हैं। इनसे पढ़ने वाले शिष्य कहलाते हैं। गुरु अपने अनुभव से पढ़ाते हैं। इसीलिये बच्चों को गुरु से Attach करना चाहिये।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

श्रावकों (गृहस्थ) का धर्म नैमित्तिक (पर्व/उत्सव) होता है;
साधुओं का हर समय।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

कथायें आदि जानने से कल्याण नहीं होगा। जो नहीं जानते और उसे जानने का पुरुषार्थ करते हैं, उससे भला होगा। वे भव्य-सिद्ध हैं।
जैसे शुरु में Bouncer ऊपर से निकल जाते हैं, धीरे-धीरे उन्हें खेलने का अभ्यास करने वाले, अच्छे Batsman बनते हैं।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

धरती, धैर्य शब्द से बना है, धैर्य का सबसे बड़ा प्रतीक। धरती तो माँ का रूप है जो अपने बच्चों की गंदगी को साफ करती है, धरती तो उस मल को भी मूल्यवान(खाद) बनाकर वापस दे देती है।

निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

कुंडलपुर मंदिर निर्माण के अवसर पर …
नींबू को संतरे में मिलाने से नारंगी। ऐसे ही बड़े-बड़े प्रासाद/ मंदिर बनाने में बड़े-बड़े पत्थर प्रयोग होते हैं, पर उनका संतुलन बनाये रखने में छोटी-छोटी पत्थर की Chips का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। यहाँ तक कि नारंगी पर छिलका न हो तो वह सूख जाती है, यही Role स्वयंसेवकों का होता है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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