कोठी में छप्पर नहीं तो ऊपर वाला छप्पर फाड़ कर कैसे देगा !
आचार्य श्री विद्यासागर जी
भाग्य तो पापी के पास में भी होता है।
पुरुषार्थ पुण्यात्मा के ही।
चिंतन
अपना सोचा,
ना हो, अफसोस है*,
फिर भी सोचो**।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(* होगा वही जो भाग्य में लिखा है।
** क्योंकि पुरुषार्थ करना ही है)
“साँच को आँच नहीं” कहावत कथंचित सीता जी की अग्नि परीक्षा से प्रेरित है, जब उनको अग्निकुण्ड में आँच तक नहीं आयी थी।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
आइंस्टिन के पास एक भारतीय गया और एक खेल शुरू किया → आइंस्टिन एक प्रश्न रखेंगे यदि भारतीय जबाब नहीं दे पाया तो उसे 5 डालर देने होंगे।
भारतीय प्रश्न करेगा, जवाब न दे पाने पर 500 डालर देने होंगे।
आइंस्टिन ने चांद की दूरी पूछी, भारतीय जबाब नहीं दे पाया सो 5 डालर दे दिये।
भारतीय ने प्रश्न किया → वह कौन है जो 3 पैरों से पहाड़ पर चढ़ जाता है पर उतरता 4 पैरों से है ?
आइंस्टिन ने 500 डालर देकर, वही प्रश्न भारतीय पर दाग दिया।
भारतीय ने बिना सोचे 5 डालर दे दिये । 490 डॉलर लेकर चला गया।
(अरविंद)
ना, मत बोलो,
“हाँ” की कूबत देखो,
दंग रह जा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
भगवान से बल मांगते हैं, क्या वे बल देते हैं ?
कमज़ोर आदमी का स्मरण/ संगति से कमज़ोर होने लगते हैं। हनुमान भक्त युद्ध में “जय बजरंग बली” के नारे से ऊर्जा ग्रहण करते हैं। तो सर्वशक्तिमान के नाम से शक्ति नहीं महसूस होगी !
चिंतन
अच्छाई के माध्यम से ही सच्चाई का दर्शन होता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
चीते और कुत्ते की दौड़ में, कुत्ता जी-जान से दौड़ा पर चीता दौड़ा ही नहीं।
कारण ?
चीते को अपनी Superiority सिद्ध करने की ज़रूरत ही नहीं थी।
(हम क्या सिद्ध करने में अपने जीवन को दांव पर लगा रहे हैं ?
कि हम मनुष्य हैं ?? सर्वश्रेष्ठ Category के हैं ??)
(डॉ. पी.एन.जैन)
कर्म, धर्म की ओर ले जाता है,
धर्म, कर्म को अनुशासित करता है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
समता और ममता सौतन है।
एक को ज्यादा महत्त्व दिया तो दूसरी रुठ जाती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
अमीर के जीवन में जो महत्व “चैन” से “सोने” का है,
गरीब के जीवन में वही महत्व “सोने” की “चैन” का है।
(सुरेश)
दया…….दु:ख न हो जाय/ दु:ख न देना।
करुणा… दु:ख में से निकालना।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
क्या देवदर्शन टी.वी. पर करने से काम चलेगा ?
क्या पिता के जीवित रहते, उनके दर्शन फोटो पर करने से काम चलेगा?
साक्षात दर्शन के बराबर Energy मिलेगी क्या ??”
क्या यह अपशगुन नहीं माना जायेगा ???
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी)
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