दूसरों के दु:ख में साझेदारी करें,
अपने दु:ख में साहस रखें ।

(श्री सुनील)

एक हिलते हुये जीर्णशीर्ण पुल पर एक भक्त ड़रता हुआ जा रहा था । दूसरी ओर देखा देव खड़े हैं । उसने सहायता के लिये देव को बुलाया पर वे आए नहीं और वहीं खड़े रहे । बड़ी मुश्किल से वह भक्त दूसरे किनारे पर पहुंचा और वहाँ जाकर देव से शिकायत की – आप मेरी सहायता के लिये आए क्यों नहीं ?
देव – ये पुल टूट गया था इसलिये मैं उसे पकड़े हुये खड़ा था ।

(श्री आर. बी. गर्ग)

हम हर छोटी छोटी मुसीबत के लिये अपने दैव/भाग्य को कोसते रहते हैं,
दैव/भाग्य से हमें कितनी बड़ी बड़ी चीजें मिली हैं उन पर ध्यान नहीं देते ।

धन दौलत की दरिद्रता से तो छोटी मोटी गिरावट आ सकती है,
पर मानसिक दरिद्रता, दरिंदता की ओर ले जाती है ।
(यानि दरिंदा बना देती है )

(कु. अनुपमा)

किसी मेंढ़क को थोड़े से भी गर्म पानी में ड़ाला जाये, तो वह कूद कर बाहर आ जाता है ।
पर मेंढ़क जिस पानी के बर्तन में हो, उसे यदि धीरे धीरे गर्म करके उबालने की स्थिति तक ले जाया जाये, तो भी वह बाहर नहीं कूदता और वहीं मर जाता है ।

यदि अचानक कोई बड़ा पाप हो जाये तो वह हमें झटका देता है, इससे बचने की हम कोशिश भी करते हैं ।
पर थोड़े थोड़े पाप कर्मों को करते करते हम अभ्यस्त होकर खत्म हो जाते हैं पर उनसे छुटकारा पाने का प्रयत्न नहीं करते ।

(श्री गौरव)

कैलेन्ड़र का महत्त्व पुरूषार्थी और अनुशासित व्यक्तियों के लिये है ।
बाकि सब तो दिन, महीनों और पूरे जीवन को बिना देखे ही गंवाते रहते हैं ।

(श्री एस.के.जैन)

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