जो लोग ज्ञान को दूसरे के हाथ के चम्मच से लेते रहते हैं ।
अंत में उनके हाथ सिर्फ़ चम्मच ही रह जाता है ।
(श्री धर्मेंद्र)
( भावार्थ :- दूसरे के हाथ से चम्मच से लेते रहने का मतलब है – खुद ज्ञानार्जन करने का पुरूषार्थ नहीं करते, ज्ञान का मनन, चिंतन नहीं करते तथा चरित्र में उस ज्ञान को नहीं उतारते हैं, ऐसा ज्ञान अंत में उपयोगी नहीं रहता है । )
हम अच्छे इसलिये नहीं हैं क्योंकि दुनिया हमें अच्छा कहती है,
बल्कि इसलिये अच्छे हैं क्योंकि हममें अच्छा बनने की संभावनायें अच्छी हैं ।
चिंतन
जिसका दिमाग (ज्ञान) ज्यादा चलता है, उसके पैर (चारित्र) कम चलते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
महावीर भगवान ने कहा मेरी शरण में नहीं,
अपनी शरण में जा और मेरे जैसा बन जा ।
मंदिर तो न्यायालय हैं जिनमें पाप और पुण्य का Account देखा जाता है ।
तिथियां तो 15 या कम होतीं हैं, पर उन तिथियों में किसी अतिथी के आने या जाने से वे पूज्य हो जातीं हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
निंदा :- सच्चे झूठे दोषों को प्रकट करने की इच्छा ।
परनिंदा :- ईर्ष्यावश की गई निंदा ।
गड़बड़ लोगों को Sand paper समझो, आप Smooth हो जाओगे, Sand Paper अपना वज़ूद खो देगा।
पूरे दिन पूजा का टेप लगाने की अपेक्षा, भाव से एक पूजा करना बेहतर है, गिनती Important नहीं है ।
टेप से वायुमंड़ल पर मंत्रों का प्रभाव भी नहीं पड़ता है ।
जो शांति से जिये वो संत ।
आयुष जैन (गुना ) 12 साल के बच्चे ने आचार्य श्री के श्री मुख से सुना कि एक शराबी हर समय शराब पीता था, उसे कहा गया कि कमरे के एक कोने से दूसरे कोने में जाओ तब शराब ना पीने का नियम ले लो । उसने नियम ले लिया, कमरे में एक कोने से दूसरे कोने में जाते समय छत गिर गई और वो मर गया, लेकिन मृत्यु के बाद देव बना, क्योंकि वह त्यागी मरा था ।
आयुष को भी Thalassemia बीमारी हो गयी | जब हालत बहुत बिगड़ने लगी और उसे इन्दौर Ambulance से ले जाने लगे, रास्ते में उसे घबराहट हुई उसके पिता ने कुछ खाने और दवा लेने का आग्रह किया तब आयुष ने कहा कि मैं तो नियम लेके चला हूँ कि जब तक इन्दौर नहीं पहुंच जाऊंगा, तब तक मेरा अन्न, जल और दवा का त्याग है।
आज आयुष अपना नियम द्रढ़ता से निभाते हुये प्राण त्याग कर, देवलोक को सिधार गये हैं ।
मनीषा बुआ
छोटे-छोटे नियमों को द्रढ़ता से पालने वाले देवगति ही पाते हैं ।
शुभ सरस्वती है तथा लाभ लक्ष्मी है ।
पर हम सब लाभ ही लाभ के पीछे लगे रहते हैं ।
शुभ बढ़ा लो ( अपने पुरूषार्थ को धर्म में लगाकर ) और लाभ कम कर लो ( दान से ) तो जीवन में शुभ के साथ लाभ भी ज्यादा हो जायेगा ।
जैसे पंगत में मना करने पर और-और मिलता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
मुसलमान समुदाय के अबुल कासिम गिलानी और सरमद, औरंगजेब बादशाह के समय फ़कीर हुये, जिन्होंने दिगम्बरत्व को अपनाया ।
बादशाह के पूछ्ने पर कि आप नग्न क्यों रहते हैं ?
उन्होंने ज़बाब दिया कि लिबास वो पहनते हैं जिनमें ऐब होते हैं,
और जिसने तुझे ये बादशाहत दी है उसी ने हमें ये लिबास दिया है, हम उसके दिये हुये लिबास को कैसे छोड़ दें ?
मुनि श्री क्षमासागर जी
कलकत्ता की तरफ विहार करते समय एक पुलिस एस. पी. साथ में चल रहे थे ।
उन्होंने गुरू श्री से पूछा – नग्नता से क्या संदेश मिलता है ?
गुरू श्री – कम से कम में काम चलायें, जो बचे वो दूसरों के काम आए, यह नग्नता का अर्थ-शास्त्र है ।
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