• कपट नहीं करना या मन की सरलता को आर्जव कहते हैं ।
  • बच्चा चाहे आदमी का हो या जानवर का अपनी निष्कपटता के कारण सबको प्रिय होता है ।
  • कल का धर्म अस्तित्व को, अपने ‘मैं’ को मिटाने का था,
    आर्जव धर्म मन, वचन, काय को एक करने का है ।
  • जीवन में मिठास तो जरूरी है, पर गन्ने वाला- स्वभाविक
    टेड़ा मेड़ा जलेबी जैसा नहीं – वैभाविक
  • बगुले से तो कौआ अच्छा है – अंदर बाहर एक सा ।
  • संसार में ढ़ोंग का जीवन भले ही चल जाये, पर ढ़ंग का जीवन जीना है तो आर्जव धर्म लाना होगा ।
  • कपट की गहराई सबसे ज्यादा होती है, क्रोध तो Surface पर दिखता है, मानी को थोड़ा सा मान देते ही ठीक हो जाता है और लोभी थोड़ा पाकर ।
  • सांप के पैर नहीं दिखते पर बहुत तेज और जहरीला होता है ।
    कपटी की भी चाल नहीं दिखती ।
  • हम घर, बाहर, मंदिर में, छोटे और बड़ों के साथ अलग-अलग मुखौटे तो नहीं लगा रहे ?
    हमारे व्यवहार अलग-अलग जगह और अलग-अलग व्यक्तियों से भिन्न तो नहीं ?
  • कपटी अगले जन्म में तिर्यंच (जानवर) बनता है और उसके जीवन में संताप और Tension रहता है ।

मुनि श्री सौरभसागर जी

  • मान का ना होना मार्दव धर्म है ।
  • क्षमा पहला धर्म, एक Message छोड़ गया – ‘क्ष’ से क्षय करें, ‘मा’ से मान को ।
  • Ego – ‘E’ से ईश्वर, Go से चला जाना ।
  • क्रोध तो थोड़ी देर को आता है, पर अहंकार बहुत समय तक टिका रहता है ।
    क्रोध प्राय: व्यक्ति से होता है, मान समस्त/समुदाय के साथ होता है ।
  • कोई रूठ जाये तो उसे मनाते हैं – ‘मान जाना’
    आकर बताते हैं – ‘मान जायेगा’
    उसके मान जाने के बाद कहते हैं – ‘मान गया’ ।
  • मानी अगले जन्म में हाथी बनता है,
    उसकी सूंड़ बहुत लंबी पर जमीन पर घिसटती रहती है, वह सब काम नाक से ही करता है ।
  • मान का हनन प्रेम से होता है ।
  • मान ‘मूंछ’  और ‘पूंछ के चक्कर में ही होता है ।
    पति मूंछ के चक्कर में तथा पत्नि पूंछ (उसकी घर में पूछ ना होना ) के चक्कर में मान करते हैं ।
  • हमको अस्तित्व बनाये रखना है विनम्रता से,
    अस्तित्व खत्म करना है मान को समाप्त करके ।

मुनि श्री सौरभसागर जी

उत्तम क्षमा :-

  • क्रोध की परिस्थितियां मिलने पर भी गुस्सा ना करना ।
  • हजार चिनगारियों के पास एक व्यक्ति भी नहीं आता,
    शहद की एक बूंद पर हजारों चीटियां आकर्षित होती हैं ।
  • ‘Welcome(वैलकम)’ की उपेक्षा करने वाला बैल है ।
  • क्रोध शरीर में खून की तरह रहता है, बात की सूई चुभते ही बहने लगता है ।
  • क्रोध के Action पर Control ना हो तो चलेगा, पर क्रोध का Reaction तो मत करो ।
  • क्रोध से ज्यादा क्रोध की गाँठ बुरी है ।
  • कभी संवाद मत बंद करना ।
    पति पत्नि में संवाद बंद हो गया था,
    पति ने स्लिप लिखकर पत्नि को दी – सुबह 4 बजे जाना है, उठा देना ।
    किसी ने उठाया नहीं ट्रेन निकल गई, तकिये की साइड़ में स्लिप रखी थी –  उठो 3 बज गये हैं ।
  • गालीयों का Stock Limited   होता है, वह 48 मिनिट से ज्यादा नहीं चल पाता ।
    उस मुहुर्त को टाल दें, 5 गहरी सांस लें या 5 कदम पीछे चलने के बाद React करें तो क्रोध शांत हो ही जायेगा ।

मुनि श्री सौरभसागर जी

श्री आतिफ़ ( आशीषमणी) के मित्र  Canada में कार्यरत हैं, मुझसे मिलने बस से आ रहे थे जबकि घर में गाड़ीयां थीं ।

पूछने पर बताया – जब मैं अकेला चलता हूं, तब कार का प्रयोग नहीं करता हूँ और उससे जो बचत होती है वो पैसा मैं दान में देता हूँ । क्योंकि वो पैसा मैंने अपनी सुविधाओं को कम करके बचाया है, उस पर मेरे परिवार का अधिकार नहीं है ।
युवा आतिफ़ की ऐसी भावनाओं से हम भी कुछ सीखें !

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