गुरू आदेश नहीं, निर्देश देते हैं ।

निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

आत्मा की आराधना छोड़ना अपराध है,
अपराध तभी होते हैं जब पंचेन्द्रियों के विषयों में लिप्तता अधिक हो जाती है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

भगवान कभी आज्ञा नहीं देते, वे सिर्फ बताते हैं ।
इसमें आज्ञा भंग होने का ड़र भी नहीं रहता ।
आज्ञा देना आसान है, मनवाना बहुत कठिन, मांगना बहुत सरल है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

पूरे माह ईमानदारी और मेहनत से काम करेंगे तो माह के अंत में पगार मांगना पड़ेगी या अपने आप बैंक में पहुँच जायेगी ?

अच्छे कर्म करो, अच्छा फल स्वत: मिलेगा ।

चिंतन

मृत्यु-भय  किनको लगता है ?

श्रीमति शर्मा

  1. मृत्यु-भय  उनको होता है, जिन्हें कर्म-सिद्धांत पर और अपने कर्मों की अच्छाई पर भरोसा नहीं हो ।
  2. यदि आपका तबादला पदोन्नति पर हुआ हो, तो आप खुशी खुशी जायेंगे या नहीं ?

चिन्तन

कृषि, घास (संसार का वैभव) पैदा करने के लिये नहीं की जाती, घास तो Main फसल (मोक्ष मार्ग साधना) के साथ स्वतः ही प्राप्त हो जाती है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

हमारे अंदर अनुकम्पा कितनी प्रतिशत है ?

पूरे दिन में जितने प्रतिशत समय, हम चींटी/कीटाणुओं को देखकर चलते हैं,
या अपने से छोटों के साथ कीड़ों मकोड़ों जैसा व्यवहार नहीं करते हैं,
उतनी प्रतिशत अनुकम्पा हमारे अंदर है ।

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