When you get little, you want more.
When you get more, you desire even more.
But when you lose it, you realise “little” was enough.

(Ku. Agya Khurdelia)

यदि विद्या पूर्ण रूप से हासिल नहीं की, तो काम नहीं चलेगा ;
जैसे अभिमन्यु अधूरी विद्या  से मारा गया ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

एक ब्रम्हचारी जी कुछ हरी सब्जियों को रख कर बाकी का त्याग कर देते थे,
और भोजन से पहले हाथ उठा कर बोलते थे  – हे बाकी सब्जियों तुम निश्चिंत रहो, तुमको अभयदान देता हूँ ।

एक किसान रोजाना अपनी पत्नी को पीटता था,
गुरू ने कहा – ज्ञाताद्रष्टा बन जाओ,
इस तरकीब से किसान पत्नी को पीट नहीं पाता था ।
किसान परेशान रहने लगा और एक दिन उसने तरकीब लगाई कि हल में एक बैल को तो एक तरफ़ से लगाया और दूसरे को दूसरी तरफ़ लगा कर खेत जोतने लगा ।
पत्नी ने देखा और ज्ञाता-द्रष्टा का मंत्र याद कर कुछ नहीं बोली और किसान उसकी पिटाई नहीं कर पाया ।

यदि ज्ञाता-द्रष्टा बनें तो कर्म हमारी पिटाई नहीं कर पायेंगे

पं. रतनलाल जी -इन्दौर

शांत-स्वभावी की क्षमता बढ़ जाती है।

झगडे में शोर बहुत होता है, सुलह शान्ति से होती है ।

आत्मा का स्वभाव झुकना है, पर हम इंतजार करते हैं कि पहले सामने वाला झुके,
क्योंकि हमने अभिमान का जामा पहन रखा है।

मुनि श्री क्षमासागर जी

पर के पास जितना जाओगे, आत्मा से उतने ही दूर हो जाओगे ।

शुक देव को 20 साल की अवस्था में वैराग्य हो गया ओर उन्होंने घर छोड़ दिया । उनके पीछे-पीछे उनके पिता उन्हें वापस लाने के लिये जा रहे थे। जब वे एक सरोवर के पास से निकले, उसमें नहाती हुयीं स्त्रीयों ने शुक देव के निकलने पर अपने वस्त्र ठीक नहीं किये, पर जब 80 वर्षीय पिता पास से निकले तब उन्होंने अपने शरीरों को ढ़कना शुरु कर दिया ।
पिता के पूछ्ने पर स्त्रीयों ने कहा- बात उम्र की नहीं है । यदि द्रष्टि सही हो तो कपड़े संभालने की जरुरत नहीं है ।

ब्रम्ह्चर्य, सिर्फ शरीरिक पवित्रता ही नहीं बल्कि द्रष्टि की निर्मलता का नाम है।

मुनि श्री क्षमासागर जी

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