संसार के लिये सब इंतज़ाम करते हैं, मोक्ष के लिये सिर्फ इंतज़ार

हम सब चारों गतियां हर समय बांधते रहते हैं ,वे कर्म हमारी आत्मा से चिपकते रहते हैं ।
जब भी विपरीत परिस्थितियां उपलब्ध हों तब करना बस यह है कि –
1. पहले देवताओं जैसा व्यवहार करें, जैसे – भाई साहब ! ऐसे मत बोलिये ।
2. भाई साहब ना मानें तो थोड़ा धमकायें, मनुष्य की तरह
3. फिर भी ना मानें तो धमकी बढ़ाकर सींग मारने की स्थिति बना दें – पशुत्व ।
4. अंत में नारकियों जैसा व्यवहार कर सकते हैं, ताकि अगली बार सामने वाले की आपको छेड़ने की हिम्मत ना पड़े ।
इस क्रम को Adopt करने से धीरे-धीरे आपके व्यवहार में से नारकीत्व/पशुता कम होती जायेगी और देवत्व/मनुष्यता बढ्ती जायेगी, क्योंकि अधिकतर Cases देवत्व और मनुषत्व में ही निपट जायेंगे ।

क्या सोचा ?

चिंतन

श्वांस की क्षमता देखें – फेफड़ों में वायु भरने पर यदि कार भी ऊपर से निकल जाये तो कुछ नुकसान नहीं होता ।
हवाईजहाज के टायर हवा धारण करने से कितना बोझ उठा लेते हैं !

फिर विश्वास की क्षमता कितनी होगी ?

आचार्य श्री विद्यासागर जी

संसारी जीव संसार के चक्कर को चक्कर ना मान कर शक्कर मान रहा है ।
मीठे का आदी हो जाने के कारण यथार्थ को भी नहीं मानता है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

गुरू श्री के पास एक सज्जन आए और पैर छूने लगे ।
गुरू श्री – यदि तुम लड़के हो तो पैर छूलो, यदि लड़की हो तो मत छूना ।
(क्योंकि उनके पहनावे से यह पता नहीं लग रहा था कि वह लड़के थे कि लड़की )

श्री विमल चौधरी

एक दिन अकबर ने बीरबल से कहा की तुम इतने होशियार हो तो तुम्हारे पिता कितने होंगे, कल उन्हें दरबार में लेकर आओ । पिता तो इतने होशियार थे नहीं , पर बीरबल ने उनको एक गुर सिखा दिया ।
अगले दिन अकबर बड़े बड़े प्रश्न लेकर तैयार बैठा था, प्रश्न किया पर पिताश्री मौन रहे और मुस्कुराते रहे ।
अकबर ने बीरबल से पूछा – ये मेरे प्रश्नों का ज़बाब क्यों नहीं दे रहे हैं ?
बीरबल ने कहा – खता माफ़, ये बेवकूफों से बात नहीं करते ।

हम दुनियासे क्यों बात करते हैं ?

आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी

माँ काम करते समय बच्चे को दूर रखने के लिये खिलौना दे देती है, वह मग्न हो जाता है ।
वैभव भी खिलौना है, जिसे मिला वह प्राय: जिनवाणी माँ से अलग हो जाता है ।
जब माँ पास बुलाना चाहती है तो खिलौना छीन लेती है, गोदी में ले लेती है ।

वैभव छिनने पर यही सोचें कि जिनवाणी माँ अपने पास बुला रही है ।

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