Care should be in heart, not in words;
Anger should be in words, not in heart.
(Mr. Sanjay)
जाप, पूजा आदि बैठकर या ख़ड़े होकर करने के लिये क्यों कहा है ?
बैठने से 90 Degree का Angle बनता है, लेटने से “0” Degree का ।
यदि हम अपना ध्यान / Efficiency 90% (100% जो आजकल हो नहीं सकती ) रखना चाहते हैं तो बैठकर या ख़ड़े होकर करें ।
चिंतन
दीप से दीप जलता है, तो उजाला होता है ।
आदमी से आदमी जलता है, तो अंधियारा होता है ।
( श्रीमति निधि – ग्वालियर)
खट्टे दही ( विपरीत परिस्थिति ) के लगातार मंथन से भी नवनीत निकलता है ।
गप्पी दो घर बिगाड़ता है, श्रोता दो घर बनाता है ।
श्रोता अपना धर्म श्रवण कर उद्धार करता है और वक्ता को साता देता है ।
धर्म की राह पर प्रगति करना चाहते हो ?
- यदि नहीं, तो बात खत्म ।
- यदि हाँ, तो –
- Admit करें की आपमें कमजोरियाँ हैं ।
- उनकी List बनायें ।
- किसी गुरू की तलाश शुरू करें ।
गुरू –
A – जो श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र में आपसे श्रेष्ठ हों ।
B – जो आपको समय दे सकें । - उन्हें Weaknesses की List बताकर उन्हें दूर करने के उपाय के बारे में Discuss करें ।
- अभ्यास करें । गिरेंगे, गिरने से सीख लें, उठें, फिर चलें ।
- गुरू को Regularly Visit करें, उनके Touch में रहें । उन्हें बतायें – क्यों गिरे, क्या सीखा, प्रायश्चित लें ।
- धार्मिक और ईमानदार लोगों की संगति रखें ।
मोक्षमार्ग प्रशस्त होगा ।
चिंतन
अति ( Excess ) के बिना इति ( Goal ) से साक्षात्कार करना संभव नहीं,
पीड़ा की अति ही, पीड़ा की इति/End है,
पीड़ा की इति ही, सुख का अर्थ है,
पीड़ा को सहना ही, वास्तविक और सात्विक सुख है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
रिश्ते और रास्ते एक सिक्के के दो पहलू हैं,
कभी रिश्ते निभाते निभाते रास्ते बदल जाते हैं,
कभी रास्ते पर चलते चलते रिश्ते बन जाते हैं ।
(श्रीमति उदया)
भगवान, गुरु, धर्मावलंबियों से Relations – सम्बंध कहलाते हैं ।
संसारी लोगों से Relations – अनुबंध/करार ( Agreement ), मतलब के ,फ़ायदे/नुकसान के होते हैं ।
सबसे बडा शत्रु – चुगली करने वाला, क्योंकि वो दो प्राणीयों के भाव खराब करता है।
अत: कम से कम चुगली ना सुनने का नियम ले लेना चाहिए, जो कि आसान है ।
बाई जी
सफ़ेद कैनवास पर छोटा सा काला धब्बा लगाकर पूछने पर कि क्या दिखा ?
सब यही कहेंगे कि काला धब्बा दिखा ।
इतना बड़ा सफ़ेद कैनवास नहीं दिख रहा और छोटा सा काला धब्बा दिख रहा है क्योंकि,
हमारी प्रकृति ही बुराईयों को देखने की है ।
( Dr. P. N. Jain )
Kite rise highest against wind, not with it.
अनंतानुबंधी ( अति तीव्र कषाय ) :- अपनी सीट और साथ वाली भी घेर लेना।
अप्रत्याख्यान ( तीव्र कषाय ) :- अपनी सीट पर ही बैठना।
प्रत्याख्यान ( मध्यम कषाय ) :- अपनी सीट पर किसी दूसरे को भी बैठाना।
संज्वलन ( मंद कषाय ) :- अपनी सीट किसी दूसरे को दे देना।
श्री लालमणी भाई
जब मेघनाथ गर्भ में थे, तब रावण ने ज्योतिषी से पूछा – यह बच्चा मृत्यु पर विजयी कैसे होगा ?
ज्योतिषी ने कहा – जब 9 ग्रह बीच के घर में आ जायेगें ।
रावण सब ग्रहों को पकड़ लाया और बीच के घर में बैठा दिया । जब पता लगाने गया कि बच्चा हुआ या नहीं । इतने में शनि थक था और उसने अपना पैर चौथे घर में फैला दिया ।
कितना भी कर्मों को समेटो, कहीं ना कहीं से खिसक ही जाते हैं ।
श्री लालमणी भाई
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