स्नेह के संसर्ग (तेल) के कारण ही तिल को घानी में पिलना पड़ता है ।

दुश्मन ताकतवर हो तो हमला दोनों ओर से करें – बाहर से क्रियायें, अंदर से भी चिंतन आदि,
जैसे राजधानी (मन) में जासूस भेजे जाते हैं,

बाह्य और अंतरंग (जासूसों) में Communication Establish होना चाहिये वरना दुश्मन (अनादि संस्कार/कर्म) हारेगा नहीं,

राजधानी को जीतने के लिये, बाह्य छुटपुट किले जीतने से काम नहीं चलेगा ।

चिंतन

मुर्दा ड़ूबता नहीं, ड़ूबता तो ज़िंदा ही है ।
क्योंकि मुर्दा के समता भाव है और ज़िंदा छटपटाता है, अहंकारी है और कर्ता की भावना रखता है, इसलिये ड़ूब जाता है |

मुनि श्री मंगलानंद जी

वीतरागता से अन्तर्मुहूर्त में मुक्ति मिल सकती है, आराधना से नहीं ।
क्योंकि आराधना तो जानने की प्रक्रिया है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

बारहवीं कक्षा में जब मेरा Dissection करने का नम्बर आता था, तो मैं Side वाले का देख कर काम चला लेता था ।
पर Exam में ड़र था कि मेंढ़क काटना ही पड़ेगा, सो भगवान से प्रार्थना करता रहता था कि मुझे Exam में मेंढ़क ना काटना पड़े।
सारे Colleges के Exams एक साथ होने से मेंढ़क कम पड़ गये और Examiner ने Offer दिया –
जो Dissection नहीं करना चाहें वे सिर्फ Viva दे सकते हैं, मैंने Viva ले लिया और मैं Dissection करने से बच गया ।

Dr. S.M. Jain

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