दुनिया का सबसे सस्ता और अच्छा मोटीवेशन….
दूसरों के उत्कृष्ट कार्यों की दिल से प्रशंसा करना।
(अनुपम चौधरी)
मोबाइल से पूजादि कर सकते हैं यदि उसे जिनवाणी का Digital रूप मानकर विनय करें तो।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
“जाग जाओ” यानि जाग (विवेक) + जाओ (आचरण करो, जागकर बैठे मत रहो)
महाराज आपका स्वास्थ्य कैसा है ?
स्वास्थ्य 3 प्रकार से ख़राब होता है →
1. मानसिक….श्रद्धा की कमी से होता है।
2. पेट की ख़राबी से…. रसना की गृद्धता से।
3. कर्मोंदय से…. मन की दुर्बलता से।
साधुजनों के पहले दो तो होते नहीं, तीसरे में पापोदय तो होगा पर मन को सबल बनाये रखने से उसे कर्म काटने का माध्यम जानकर दुःख का कारण नहीं।
मुनि श्री मंगलानंदसागर जी
शाकाहारी जीवों को कैसे पहचानेंगे ?
1. शाकाहारी जीवों की आँखें गोल न होकर लम्बाई लिये होती हैं।
2. नाखून नुकीले नहीं होते, चौड़े/ चपटे होते हैं जैसे गाय, घोड़ा
3. मांसाहारी शरीर को ठंडा रखने के लिये जीभ बाहर निकाले रखते हैं।
हमारे अंदर ये शाकाहारी लक्षण होते हुए भी हम प्रकृति के विपरीत क्यों ?
(अरविंद)
गरीब शिक्षक दूर स्कूल पैदल जाता था। कभी कोई अपने वाहन में बैठा लेता।
कुछ दिनों बाद उसने मोटर साइकिल खरीद ली। अब वह सबको Lift देने लगा। एक दिन उसकी मोटर साइकिल एक ठग छीन ले गया।
अगले दिन मोटर साइकिल उसके घर के बाहर खड़ी थी, साथ में एक चिट्ठी थी → जहाँ भी जाता हूँ, सब यही पूछते हैं, मास्टरजी की मोटरसाइकिल तुम्हारे पास कैसे आयी ? कबाड़ी भी खरीदने को तैयार नहीं है।
परोपकार का फल !
(एकता-पुणे)
शतरंज के खेल में वज़ीर को बचाने का अधिकतम पुरुषार्थ किया जाता है, जिसने बचा लिया वो खेल जीत गया।
जीवन के खेल में ज़मीर को बचाने का कितना प्रयास ?
जिसने बचा लिया समझो वह खेल जीत गया।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
दुःख में ज्यादा दुखी होंगे तो दु:ख ज्यादा होंगे।
दुःख में कम दुखी होगे तो दु:ख कम होंगे।
जैसे शरीर पर से साँप निकलना दुःख का कारण। यदि चीख पुकार की तो साँप डस लेगा, दुःख बहुत ज्यादा। शांति से भगवान का नाम लेते रहे तो दुःख कम।
चिंतन
मेरा तो क्या है ! मैं तो पहले से हारा,
तुझ से ही पूछेगा यह संसार सारा…
डूब गयी क्यों नैया तेरे रहते खेवनहार !!
यहाँ से ग़र जो हारा, कहाँ जाऊँगा सरकार ?
जीवन में समानभूति के बिना स्वानुभूति नहीं आ सकती है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
जानवर जब संयम में नहीं होते तब खुरों से जमीन खोदते हैं, इसलिये उन्हें खुराफाती कहते हैं।
खुराफाती मनुष्य यह काम मन से करते हैं (बिना बात, भूत काल की बातों को खोदते रहते हैं)।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
मौन हो जाने पर सही से सुनाई भी देता है, दिखाई भी देता है।
(अपूर्व श्री)
सम्मान/ प्रतिष्ठा की चाहत उतनी ही करनी चाहिए,
जितना देने का सामर्थ्य रखते हो।
क्योंकि….
जो देते हो उससे ज्यादा वापिस कैसे और क्यों मिलेगा !
(अनुपम चौधरी)
रास्ते और धर्म कभी बंद नहीं होते।
पर लुटेरे रास्तों को और धर्मात्मा कभी-कभी धर्म को बदनाम कर देते हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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