बेल को सहारा मिलने पर ऊँचाइयाँ पा लेती है पर उस निमित्त से उतरती नहीं है।
सिर्फ मनुष्य ऐसा है जो निमित्त पाकर चढ़ता कम, उतरता ज्यादा है जैसे धन दौलत का दुरुपयोग।

चिंतन

किसी व्यक्ति को कुछ काम करने को कहा।
प्रतिक्रिया >>> मैं आपका नौकर नहीं हूँ।
काश ! यह सोच अपनी इंद्रियों के बारे में भी होता >>> कि मैं इंद्रियों का नौकर नहीं हूँ !!
तो अनंत काल से भटकते नहीं रहते। अनंतकाल के लिये आजाद हो गये होते।

(एन.सी.जैन- नोएडा)

जापान में कांच के कीमती बर्तन टूटने पर उसे सोने से जोड़ लेते हैं (Kintsugi Art द्वारा )तब बर्तन और सुंदर दिखने लगता है/ उसकी कीमत और बढ़ जाती है।
जीवन टूटने/ बिखरने पर अच्छी सोच से जोड़ कर ज्यादा खूबसूरत बनाया जा सकता है। ज़िंदगी का नया रूप पाने के लिये टूटना ज़रूरी है।

(अरविंद बड़जात्या)

पूर्ण आनंद साधु को ही जैसे बुखार उतरने पर आता है।
गृहस्थ का आनंद तो वैसा है जैसे मरीज का बुखार 105 डिग्री से 101 डिग्री हो गया हो।

निर्यापक निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

एक दिन 3 दु:खद समाचार आये –
1. करीबी रिश्तेदार
2. वफ़ादार ड्राइवर
3. ड़ेढ़ माह से घर में पल रहा चिड़िया का बच्चा,
नहीं रहे।
सबसे ज्यादा दु:ख चिड़िया के बच्चे के न रहने का हुआ, क्योंकि हर समय वह सम्पर्क में रहता था।
दुःख कम करना है तो सम्पर्क कम रखें।

चिंतन

निडरता, ज्ञान (सांप नहीं है, रस्सी है) तथा श्रद्धा से (देव, गुरु, शास्त्र व कर्म सिद्धांत पर)।
भविष्य के लिये – “जो हो, सो हो”
वर्तमान में – “जो है, सो है”
उसी रूप में स्वीकृति से निडरता आती है ।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

51% से अधिक जिसकी ओर हो, गाने उसके ही गाने में समझदारी होगी न !
51 से अधिक वर्षों की उम्र में, अगले जन्म/ भगवान की ओर ज्यादा हुए न !!
तो गुणगान किसका करना चाहिये ?
चिंतवन/ तय्यारी अगले जन्म की अधिक या इस जन्म में ही लगे रहना है ?

चिंतन

रोशनी* नहीं,
आग** जलाऊँ ताकि,
कर्म दग्ध*** हों।

*ज्ञान    **तप    ***जलना/समाप्त होना

आचार्य श्री विद्यासागर जी

समस्या को व्यवस्था में बदल लें/ कर लें, तो समस्या, समस्या नहीं रहती/ दु:ख नहीं होता।
जैसे कांटा लगा (समस्या), सुई की व्यवस्था की, कांटा निकाल लिया, दु:ख समाप्त।

मुनि श्री सुधासागर जी

Archives

Archives

April 8, 2022

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930