संग्रह इसलिये ताकि अपने और दूसरों के आपात-काल में काम आये।
परिग्रह…”चमड़ी जाये पर दमड़ी न जाय” की प्रवृत्ति।
इसलिये संग्रह का विरोध नहीं पर परिग्रह का विरोध है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
व्यक्ति महत्त्वपूर्ण नहीं व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण होता है।
कपड़ों की सारी डिजाइन ताने-बाने पर ही निर्भर करतीं हैं… सुंदर/ असुंदर।
जीवन में इनका नाम रागद्वेष है।
सुंदर…. अहिंसा, वीतरागता।
चिंतन
घमंड दबे पांव आता है, छम छम करता हुआ नहीं।
एकता – पुणे
(प्रतिक्रिया निकलती है छम छम करके)
दया के अभाव में शेष गुण कार्यकारी नहीं,
दया गुण रूपी माला का धागा है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
ऐसे मरीज़ों को क्या सीख दें जिनका अंत निश्चित/ करीब हो ?
डॉ. पी. एन. जैन
ऐसी बीमारियाँ/ स्थिति आने का मतलब है …उनका पुण्य बहुत कम बचा है, इतना पुण्य उनको बचा नहीं पायेगा। काणे गन्ने जैसी स्थिति है सो अगले जन्म के लिये इस बचे हुये पुण्य को गन्ने की तरह बो दो, अगले जन्म में पुण्य की फसल लहरायेगी।
ऐसी बीमारी/ स्थिति किसी की ना हो, सबका भला हो/ निरोग हों।
मुनि श्री सुधासागर जी
गुरु के द्वारा दिये गये सूत्र, मंत्र हैं।
ये सूत्र शास्त्र से भी ज्यादा आनंद देने वाले/ छोटे तथा सरल रास्ते से मंज़िल दिलाने वाले हैं।
मुझे गुरु के वचन शास्त्र से ज्यादा याद आते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
मोटी सी किताब में यदि बीच में एक ही पन्ना हो, पहले तथा बाद के सारे पन्ने फटे हों तो ज़िज्ञासा तो होगी न ! कि उन पर क्या लिखा हुआ था।
वह एक पन्ना वर्तमान का है।
वैसे मरने के बाद प्रियजनों के लिये अधिक से अधिक धन छोड़कर जाना भी चाहते हैं, पर खुद के भूत/ भविष्य के बारे में ज़िज्ञासा/ चिंता/ तैयारी कुछ भी नहीं !!
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
राजा के दरवाजे से एक भिखारी पीठ रगड़ रहा था।
राजा को दया आयी कि इसका कोई साथी भी नहीं है, धन दिया।
अगले दिन दो भिखारी पीठ रगड़ रहे थे, दोनों को कोड़े लगवाये,
दोनों तो एक दूसरे की पीठ खुजा सकते थे।
(श्री कुरुप)
दृष्टि 2 प्रकार की….
1) Minimum को Maximum मानकर Maximum आनंद लेना।
2) Maximum को भी Minimum मानकर Minimum आनंद लेना।
चिंतन
पर्वतों की चोटियों पर तप करने से भी ज्यादा कर्म कटते हैं, निंदा को सहन करने से।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है…
असंभव से भी आगे निकल जाना।
(अनुपम चौधरी)
He who fears to suffer, suffers from fear.
(J.L.Jain)
समझदार वह, जिसकी आँखें सामने वालों की बंद होती आँखें देखकर खुल जायें।
मुनि श्री विशालसागर जी
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