बिना शांत हुए दूध की परिणति नहीं बदलती*,
आत्मा की कैसे बदल सकती है !
शांति पाने का उपाय – धर्म/वीतरागता।
मुनि श्री महासागर जी
* दूध की परिणति दही बनकर ही बदलती है और दही के लिए दूध को ठंडा/ शांत होना होगा।
नीम की कड़वाहट बुरी नहीं, वह तो कितनी बीमारियों की दवा बनती है।
हमको बुरी इसलिये लगती है क्योंकि हमें मीठा अच्छा लगता है।
वाघले की दुनियाँ
जीवन-यात्रा को सुखद वैसी ही बनायें जैसे सड़क-यात्रा को बनाते हैं-
1. भीड़ भरे शहरों से बचने, Bypass का प्रयोग
2. Bump आने पर Speed कम करके
3. ग़लत जाने पर “U” Turn लेलें
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Do Not Look Where You Fell,
But Where You Slipped.
(J.L.Jain)
जल से ही पैदा हिमखंड (तरल से कठोर), मान के कारण जल के ऊपर/सिर पर ही रहता है, बड़े बड़े जहाजों के विध्वंस में कारण बन जाता है।
पूंछ (हमारी पूंछ हो/सब पूंछें) वाली मूंछ तो महिलाओं में भी पायी जाती है।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
दक्षिण में शिक्षा को “दंड” देना कहते हैं यानि जो उदंड को डंडे से अनुशासित करे पर कुम्हार के घड़े बनाने जैसा अंदर हाथ रखकर।
शिष्य संयम रूपी आग से नहीं, राग से डरता है।
शिक्षक तो दर्पण है उसके प्रति अर्पण/समर्पण सब छोटे हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
जीवन एक —
1. संघर्ष – बिना गुरु के,
2. खेल – गुरु मिल जाने पर,
3. उत्सव – गुरु के बताये रास्ते पर चलने से।
(अपूर्वश्री)
भाग्य, कर्म-भूमि की दुनिया में खाका देता है,
उसमें रंग पुरुषार्थ से भरा जाता है (अच्छा/ बुरा, पूरा/ अधूरा)।
स्वामी विवेकानंद जी
(प्रियजनों का मिलना भाग्य से यानि खाका मिलना।
उनसे अच्छे/ बुरे सम्बन्ध बनाना/ बनाये रखना, पुरुषार्थ से….जया)
एक कलैक्टर ने महाराज जी से साम्प्रदायिक/राजनैतिक समस्याओं के लिये दिशा-निर्देश मांगा।
महाराजा रणजीत सिंह का संस्मरण सुनाया – ताज़िया ऊंचा था, बरगद की शाखा अड़ रही थी। दोनों सम्प्रदायों के लोग आमने-सामने आ गये।
राजा ने गड्ढा खुदवाया, ताज़िया गड्ढे में से निकल गया, शाखा भी नहीं काटनी पड़ी।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
“भा” से ज्ञान जैसे सूर्य प्रकाश/ज्ञान का प्रतीक सो भास्कर।
“रत” रमण करना/आनंद लेना।
भारतीय – जो ज्ञान/ आध्यात्म में रमण/ आनंद लेते हैं।
राधाकृष्ण पिल्लई
आप हर समय आल्हादित कैसे रह लेते हैं ?
मैं क्यों नहीं रह पाता ? ————————- एन.सी.जैन-नोएडा
क्योंकि जो तुम्हारे पास* है, वह मेरे पास नहीं है।
जो तुम्हारे पास नहीं है, वह मेरे पास** है।
चिंतन
* धन/ वैभवादि
** निश्चितता
गुण अवगुण सब में होते हैं।
महत्त्वपूर्ण है कि पहली दृष्टि हमारी गुणों पर पड़ती है या अवगुणों पर। यदि गुणों पर है तो हम गुणग्राही होंगे, अपने गुणों की वृद्धि करेंगे।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पक्षी ऊंचाइयाँ पाने बारी-बारी से दोनों पंखों को ऊपर नीचे करता है, दोनों को बराबर महत्त्व देता है।
यदि एक पंख को ही ऊपर नीचे करता तो नीचे गिर पड़ता।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
जज दोनों पक्षों को निष्पक्ष सुनता है इसीलिए ऊपर बैठता है,
वकील एक पक्ष की बात करता है सो नीचे खड़ा रहता है।
चिंतन
पिता ने हलुवा बनाकर 2 कटोरियों में से, बेटे से 1 कटोरी उठाने को बोला, 1 कटोरी के हलवे पर 2 बादाम थे, दूसरी कटोरी पर 1 भी नहीं। बेटा 2 बादाम वाली खाने लगा, पिता की कटोरी में नीचे 4 बादाम थे।
दूसरे दिन पिता ने फिर 2 कटोरियों में हलुवा रखा, बेटे ने बिना बादाम वाली उठाई, नीचे बादाम नहीं निकले।
तीसरे दिन फिर 2 कटोरी, बेटे ने पिता से कहा पहले आप उठाओ, बेटे के हलवे में 8 बादाम निकले।
पहले दिन – लालच की सज़ा,
दूसरे दिन – नकल करने की सज़ा,
तीसरे दिन – बड़ों के सम्मान का, लालच पर नियंत्रण का पुरुस्कार।
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