जो निश्चित है, उस पर विश्वास न होने से संकल्प/विकल्प रूप मानसिक दु:ख होता है।
निश्चित को मानने से संतोष आ जाता है जैसे मृत्यु को निश्चित मानने के बाद सोचता है – इतने में ही जीवन चल जायेगा।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

आम का पेड़ परोपकारी या स्वार्थी ?
सबको मीठे-मीठे/स्वास्थवर्धक फल देता है, सो परोपकारी।
पर इसके पीछे छिपा अभिप्राय – कि गुठलियों के बिखरने से उसकी संतति बढ़ेगी, सो स्वार्थी।
यानि स्व-पर हितकारी।

यही स्वभाव Long-lasting and Practicable है।

चिंतन

एक कंजूस सेठ ने सही निर्णय लिया कि वह अपनी सम्पत्ति दान कर देगा।
पूछा कब कर रहे हो?
मरने के बाद।
हंसी का पात्र बना।
क्योंकि समय सही नहीं चुना था।
(क्या हम सही निर्णय/ सही समय पर ले रहे हैं ?)

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

आत्मा की बात सुनने के लिये संस्कार आवश्यक होते हैं।
जैसे इंजेक्शन लगाने के लिये स्प्रिट।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

दोनों ख़ुद गिर सकते हैं (समय के साथ निर्जीव),
दोनों दूसरों को भी गिरा सकते हैं (निर्जीव जैसे जंग, लोहे को)….निकृष्ट।
पर सजीव बन भी सकता है।
निर्जीव स्वयं नहीं बन सकता, उसे सजीव की सहायता लेनी होगी।
सजीव यदि दूसरों को भी सुधारेगा तो महान जीव, जैसे गुरु/भगवान।

चिंतन

टेकड़ी गांव के एक परिवार में 58 सदस्यों में एक चूल्हा।
संगठन का रहस्य जानने एक पत्रकार घर के बड़े सदस्य के पास पहुँचा तो उन्होंने छोटे के पास भेजा, छोटे ने बड़े के पास।
रहस्य था – एक दूसरे की इज्ज़त और विश्वास।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

उपवन को सुंदर बनाये रखने के लिये सड़े/ सूखे/ असुंदर पत्तों को हटाना होता है।
ऐसे ही जीवन में से सड़ी गली आदतों को हटा दें तो क्या जीवन सुंदर नहीं बन जायेगा !

चिंतन

  • धर्म प्राप्ति के लिये विशेष प्रयत्न, प्रभावना है।
  • भावना अच्छी हो तभी प्रभावना होती है।
  • व्रतों तथा सादगी का प्रभाव प्रभावना पर अवश्य पड़ता है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

  • खम्मामि सव्वजीवाणां, सव्वे जीवा खमन्तु मे।
    मैं पहले सब जीवों को क्षमा करता हूँ और अपेक्षा रखता हूँ कि सब जीव मुझे भी क्षमा करें।
  • जैसे अपने अपराध के लिये दूसरों से क्षमा चाहते हैं,
    क्या दूसरे से अपराध होने पर ऐसी ही क्षमा हम अपने भीतर भी धारण नहीं कर सकते ?

मुनि श्री क्षमासागर जी

  • जब हम आत्मानुराग से भर गये हों, देहासक्ति से ऊपर उठ गये हों, वहीं ब्रह्मचर्य है।
  • परिणामों की अत्यंत निर्मलता का नाम ब्रह्मचर्य है।

मुनि श्री क्षमासागर जी

अब कुछ करना नहीं,
अब तो भावना और उपाय/साधना के फल आने शुरु हो गये, भरेपन का भाव आने लगा है।
सहारे की भावना बुरी है, सहारा देना और लेना बुरा नहीं।
असली परीक्षा तो अभाव में ही होती है।
एक साधू को राजा ने अपने महल में सुलाया, सुबह पूछा-नींद कैसी आयी ?
साधू- कुछ तेरी जैसी, कुछ तेरी से अच्छी (आरामदायक, पर आदत नहीं डाली)

मुनि श्री क्षमासागर जी

न मेरा, न तेरा, जग इक रैन बसेरा।

Archives

Archives

April 8, 2022

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930