प्राय: पूरा आनंद/सुंदरता लेने/देखने के लिये 14 दिन पूर्णमासी का इंतज़ार करते रहते हैं।
चंद्रमा की हर कला/आकृति की सुंदरता का नित्य 15 दिन आनंद क्यों नहीं लेते ?
चिंतन
सत्य शब्द तो सत् से बना है तो वह कड़वा कैसे हो सकता है !
(कमलकांत)
कान का कच्चा कहावत कैसे बनी ?
वह कान का कच्चा जो यह कहने पर कि तेरा कान कौवा ले गया, वह कौवे को पहकड़ने दौड़ पड़े ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मन की निर्मलता अनेकांत से,
वचन की निर्मलता स्याद्वाद से,
काय की निर्मलता अहिंसा से आती है।
(कमलकांत)
शब्दों की कीमत नहीं होती,
पर उनके सही/ग़लत प्रयोग से आपकी कीमत बढ़/घट जाती है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
ईसबगोल को गर्म पानी से लो तो कब्ज़ दूर, ठंडे से लो तो दस्त बंद।
सादा पानी से लो तो ?
पेट में जाकर प्रश्नचिन्ह ? न कब्ज़ ठीक ना ही दस्त!
इसे कहते हैं अनुभय स्थिति, न सत्य न झूठ/ न पुण्य न पाप।
चिंतन
आहार लिये बिना, आत्मा में विहार हो नहीं सकता।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
बुरे लोगों की बुराई का क्या बुरा मानना !
तपती सड़क पर एक बच्चा नंगे पैर चने बेच रहा था। एक व्यक्ति को दया आयी उसने चप्पल दिलवा दी।
आंसू भरी आंखों से बच्चे ने पूछा – क्या आप भगवान हैं ?
नहीं।
तो भगवान के दोस्त हो ?
ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?
कल ही तो मैंने भगवान से चप्पल के लिये प्रार्थना की थी।
व्यक्ति सोचने लगा – भगवान तो बन नहीं सकता, भगवान का दोस्त बनना आसान है, सस्ता भी।
(अरुणा)
ऊब से बचने के उपाय….
1. रुचि पैदा करें
2. स्वीकारें
3. संकल्प पूरा करें
4. लक्ष्य के प्रति आदर भाव रखें
ऊबना है तो पाप से ऊबो, धर्म में डूबो।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
खेलने से ….
1. Team Sprit आती है – Individual Sports के विश्वविजेता के साथ भी पूरी टीम होती है – सेहत आदि के लिये।
2. हारना सीखते हैं।
बार-बार हार कर फिर-फिर खेलते हैं, नये उत्साह/ प्रसन्नता के साथ;
हारना अन्य किसी स्थान पर स्वीकार नहीं है, चाहे घर हो या बाहर।
(डॉ.पी.एन.जैन)
अतीत में जीना मोह है,
वर्तमान में जीना कर्मयोग है,
भविष्य में जीना लोभ है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
जब मस्तिष्क/शरीर की क्षमता का बड़ा भाग Unutilized पड़ा है, तो धर्म/अध्यात्म के साथ यदि विषय-भोग में भी Involve रहें तो क्या बुराई है ?
अनंत जन्मों से विषय-भोगों में ही तो Involve रहे हैं/उन्हें ही प्राथमिकता दी है/उनके ही संस्कार हैं/उनका आकर्षण बहुत ज्यादा है। इसलिये इस भव में ज्यादा धर्म करते हुये भी यदि थोड़े से भी विषय-भोगों में Involve होगे तो वे धर्म-ध्यान छुड़ा कर अपनी ओर खींच लेंगे।
चिंतन
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