समुद्र किसी को भी अपना जल ख़ुशी से नहीं देता हालाँकि इसकी वजह से वह खारा भी हो जाता है। खारा भी शायद इसीलिए होता होगा ताकि कोई पी न सके।
पर सूरज उसे तपा-तपा कर पानी छीन लेता है।

चिंतन

पूजा – अष्टद्रव्य (पूजा सामग्री) से भक्त्ति प्रकट करना।
आराधना – पूजा + अतिरिक्त आलम्बन से गुणों का ध्यान।
प्रार्थना – हृदय के उद्गार प्रकट करना….
मन निर्मल करने, कष्ट निवारण, कृतज्ञता प्रकट करने, सामर्थ (कष्ट सहने की) विकसित करने।
याचना – प्रार्थना + स्वार्थसिद्धि।
कामना – स्व-पर हित के लिये।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

बड़ी कंपनी में CEO के चयन के बाद मालिक के साथ डिनर रखा गया।
मालिक ने चयन रद्द कर दिया, क्योंकि उस व्यक्ति ने सूप में नमक बिना चखे डाल लिया था।
छोटा निर्णय ख़ुद नहीं लिया, मालिक को देखकर नमक डाल लिया !
HR Manager – इतनी छोटी सी बात पर निकाल रहे हैं ?
मालिक – इसे छोटी बात मानते हो तो निकालने की अगली बारी तुम्हारी होगी !
(जो छोटी बातों का बड़ा ध्यान रखते हैं, वे ही बड़े बनते हैं)

मध्य-पूर्व में दो समुद्र हैं – डैड सी और गैलिली सी। दोनों में पानी जाॅर्डन नदी से आता है। डैड सी में न तो मछलियाँ हैं, न ही कोई वनस्पति, जबकि गैलिली सी में भाँति-भाँति की वनस्पति व मछलियाँ होती हैं।

इतना फ़र्क क्यों?

गैलिली सी के पानी से गाँवों और शहरों की प्यास बुझती है, खेती होती है। गैलिली सी में कुछ समय विश्राम कर जार्डन नदी भी डैड सी की ओर चल पड़ती है। लगातार पानी का निकास होता रहता है, पर आमद और ख़र्च का संतुलन बना हुआ है।
इसके विपरीत डैड सी किसी को कुछ नहीं देता; फिर भी भीषण गर्मी के कारण उसमें पानी लगातार कम हो रहा है, और इतना खारा हो चुका है कि उसमें जीवन संभव नहीं।

हम क्या बनना चाहते हैं ? डैड सी की तरह ज़िंदा रहते हुए भी मुर्दा, या गैलिली सी की तरह जीवंत और जीवनदायी?

(कमलकांत)

क्रम – ‘क’, ‘ख’, ‘ग’, ‘घ’।
पहले ‘क’ = कर्म,
फिर ‘ख’ = खाना,
‘ग’ = गाना,
‘घ’ = घंटा, जीवन झंकृत हो जायेगा।
पर हम व्यर्थ के कामों में ज्यादा श्रम करते हैं, सार्थक में कम।
सगर चक्रवर्ती राजा के पुत्रों ने बिना श्रम किये जीना नहीं चाहा था, इसलिये उन्होंने भरत चक्रवर्ती द्वारा निर्मित 72 मन्दिरों के चारौ ओर सुरक्षा के लिये ख़ुद खाई खोदी।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

कर्मोदय सताता/भटकाता नहीं कुछ समय के लिये अटका सकता है।
कर्मोदय में पुरुषार्थ की कमी/रागद्वेष करने से भटकन/दु:ख होता है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

हमेशा अपने अनुभव से काम करें, क्योंकि 50 ग्रंथों का सार… स्वयं का अनुभव ही है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

बवंडर ख़ुद दिशाहीन/भ्रमित, औरों के भी विनाश में कारण।
यदि हवा की दिशा निश्चित हो तो नाव को किनारे, सही दिशा में चलने वालों को मंज़िल तक जल्दी पहुँचाने में सहायक होती है।

चिंतन

हनुमान जब सीता को ढूँढ़ने लंका जा रहे थे तब उन्होंने पूछा – लंका को पहचानूँगा कैसे ?
जहाँ लोग सूर्योदय के बाद भी सोते रहते हों !
सूर्योदय से एक मुहूर्त पहले से लेकर एक मुहूर्त बाद तक का काल शुभ/धार्मिक क्रियाओं का काल होता है।

मुनि श्री सुधासागर जी

मार्ग – दो
1. साधना – दृढ़ इच्छा वालों के लिये, कुछ लोग ही कर पाते हैं।
अपने भुजबल से नदी पार करना।
2. आराधना – सामान्य व्यक्तियों के लिये नाव/ट्यूब के सहारे नदी पार करना।
भवसागर दोनों ही से पार कर सकते हैं, पहले आराधना फिर साधना से।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

अनुरूप चाहने में बुराई नहीं पर हरेक को/ हर घटना को अपने अनुरूप बनाना, गलत सोच/ दु:ख का कारण है।
हर व्यक्ति अपने-अपने स्वभाव से चलता है/ घटनायें नियति के अनुसार घटित/ नियंत्रित होती है।
व्यापक दृष्टि से देखने से सहज भाव आता है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Archives

Archives

April 8, 2022

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930