कलकत्ता का बेलगछिया का भव्य जैन मंदिर 26-27 बीघा के उपवन के बीच, शहर के मध्य स्थित है।
बनवाने वाले सेठ हुलासीराम बड़े अय्याश थे।
उनके हितैषी ने समझाया – जाने से पहले अपने पाप तो धो जाओ।
आज उनका नाम/निशान बना हुआ है, घर वालों का अतापता ही नहीं।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम की माँ ने एक दिन जली रोटी अपने पति को दे दी।
उन्होंने शांति से खा ली।
कलाम के पूछने पर बताया – संसार में कोई भी पूर्ण नहीं होता, अपूर्णता को स्वीकारने में ही शांति/समझदारी है।
जीवन छोटा है, इसे दूसरों की ग़लतियाँ बताने, बाद में पछताने में व्यर्थ मत करो।

(डॉ.पी.एन.जैन)

आराधना क्यों ?
मन और गृह शांति के लिये ।
तो शांति मिली क्यों नहीं ?
क्योंकि अभी तक आराधना के उद्देश्य रहे –
1. संस्कार
2. दु:ख काटना/भौतिक आकांक्षा पूर्ति
3. पुण्य/स्वर्ग पाना ।
इन तीनों उद्देश्यों से आराधना करने वालों की श्रद्धा डगमगाती रहती है।
काम हुआ, श्रद्धा बढ़ी; नहीं हुआ आराधना कम या बंद।
जबकि होना चाहिये था – जीवन को पवित्र बनाना/आत्मा को निर्मल करना ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

प्रकृति ने तो मनुष्य की एक ही जाति बनायी है – “मनुष्य” (जैसे एकेन्द्रिय…पंचेन्द्रिय जीव) ।
मनुष्य ने उसमें कर्मों के अनुसार भेद कर दिये।
हर मनुष्य की चार जाति बन जाती हैं- सुबह-ब्राम्हण, दिन में वैश्य, शाम को क्षत्रिय, रात को शुद्र।
धर्म, भेद/लड़ाई नहीं कराता, धर्मों के अनुयायी कराते हैं;
वे आत्मा को ना तो जानते हैं, ना ही मानते हैं, इसीलिये बाह्य में जीते हैं।

आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी

स्व-धन/वस्तु का त्याग,
जिससे “स्व”, “पर” का उपकार हो;
“स्व” का उपकार ?
अपनी आत्मा का उपकार।
कैसे होगा ?
जिनालय, जिनवाणी, जिन गुरु* के लिये धन/वस्तु का उपयोग करने से।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

* जिन = भगवान, गुरु = ऐसे गुरु जो सच्चे भगवान की सच्ची साधना में लगे रहते हों।

बच्चों की प्रार्थना में बड़ों से ज्यादा चमत्कार क्यों होता है ?
उनकी सरलता/ निर्मलता के अलावा उनकी Dictionary में “ना” नाम की चीज नहीं होती, शायद यही कारण है कि नियति को भी बच्चों की ज़िद पूरी करनी पड़ती है जैसे माता-पिता पूरी करते हैं।

Talent का सीमित क्षेत्र है, प्रारम्भिक अवस्था में यह पहला दरवाजा खोलता है पर Ego आने का बहुत ख़तरा रहता है।
Attitude लगातार फायदेमंद रहता है, आगे के दरवाजे खोलता रहता है जैसे Australian Army में Elite Wings के लिये उन लोगों को चुना गया जो कभी न कभी फेल हुये थे, बाद में सफल हुये।

(डॉ.पी.एन.जैन)

Technology और धर्म विरोधी नहीं, पूरक हैं – जैसे Social Media की ज्यादातर चीजें अविश्वसनीय होती हैं ।
यही तो धर्म कहता है – जो दिखता है वह प्राय: सत्य नहीं होता, इससे धर्म पर विश्वास और बढ़ जाता है ।

चिंतन

युवा ट्रेन में रो रहा था।
कारण ?
गलत ट्रेन में बैठ गया था।
ट्रेन बदल क्यों नहीं लेता ?
क्योंकि इस ट्रेन में सीट बहुत आरामदायक मिल गयी है।
हम सबकी भी यही स्थिति है –
जानते हैं कि हम गलत दिशा में जा रहे हैं/दु:खी भी हो रहे हैं पर दिशा बदलना नहीं चाहते हैं क्योंकि जीवन आराम से चल रहा है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

जब तक संसार में हो – भोगो मत पर भागो भी मत, भाग लो – Adjust करके।
जो संसार में Adjust नहीं कर पाते, वे परमार्थ में भी स्थिर नहीं रह पाते हैं।

मुनि श्री सुधासागर जी

शुभ क्रियाओं में रुचि 3 प्रकार की –
1. कब पूरी होंगी ? – जघन्य/हल्की
2. पूरी तो नहीं हो जायेंगी – मध्यम
3. पूरी होने ना होने पर ध्यान ही नहीं, बस वर्तमान में आनंदित – उत्कृष्ट

अशुभ क्रियाओं में भी ऐसे ही घटित करें –
1.उत्कृष्ट
2.मध्यम
3.जघन्य

चिंतन

मरना है तो मर जा,
पर जीते जी कुछ कर जा,
अन्यथा कर्जा तो मत ले कर जा।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

(जितने कर्म लेकर आये हो, उससे ज्य़ादा कर्म तो मत ले कर जा)

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