ख़ाली (ग़रीब) को भरोगे तो दिखेगा (फल); संतोष होगा; पुण्य बंध होगा।
उसका तो पापोदय है; तभी तो ख़ाली है। तीव्र पापोदय में उसका भला न भी हो, पर तुम्हारा भला अवश्यंभावी है।
मुनि श्री सुधासागर जी
अब मोबाइल नं. के पहले “0” लगाने की ज़रूरत नहीं।
अगर Memory में पड़ा है तो हर्जा क्या है/ delete करने का क्या फायदा ?
हर्जा है, ये निरर्थक Zeros सार्थक Memory घेर रहे हैं।
ऐसे ही नाक में ऊँगली डालते रहना/ पैर हिलाते रहना, निरर्थक क्रियायें हैं – Wastage of Energy/अभद्र क्रियायें हैं।
चिंतन
3 प्रकार के –
1. परमात्म सत्य – जो परमात्मा को जानता है
2. आत्म सत्य – जो आत्मा को जानता है
3. संसार सत्य – जो संसार को जानता है
मुनि श्री सुधासागर जी
‘ही’ से ‘भी’ की ओर, ही बढ़ें सभी हम लोग।
‘६’ के आगे ‘३’ हों, विश्वशांति की ओर।।
(‘ही’ ‘३६’, ‘भी’ ‘६३’)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
राग – ये पेन्सिल अच्छी है ।
द्वेष – ये पेन्सिल बुरी है ।
मोह – ये पेन्सिल मेरी है/मुझे मिल जाये ।
सच्चा ज्ञान – ये तो बस पेन्सिल है, लिखने के काम आती है ।
इष्टोपदेश – (अंजू)
पुण्यात्मा व्यक्ति की महानता की कसौटी क्या है?
उस पर कष्ट कम आये या ज़्यादा; अंततः उसकी मृत्यु कष्ट से हुई, या शांति से: महानता इस पर निर्भर नहीं करती।
बल्कि इससे तय होती है कि उन कष्टों को उसने कैसे सहा। आकुलता, व्याकुलता से, या सहजता से !
दूसरे, उन कष्टों के लिये उसने अपने को ज़िम्मेदार माना, या दूसरों को !!
चिंतन
1) भगवान महावीर के 2621वें जन्म-कल्याणक पर सबको बधाई।
आत्मसंतोष/ अपरिग्रह के उपदेश पर ….
2) विकास/पुण्य भी दुविधा में डाल देते हैं –
दाल रोटी खाने को मिलती थी, तब नींद अच्छी आती थी।
कम नम्बर लाने वाले को दुविधा नहीं, Arts Subject ही लेना/मिलेगा, ज्यादा नम्बर वाले को बहुत सारे Option/दुविधायें।
मुनि श्री सुधासागर जी
मानव की सोच – वह संसार का सर्वश्रेष्ठ जीव है।
सत्य यह है कि – यदि आज पृथ्वी पर कीड़े मकोड़े (जिनको वह तुच्छ मानता है) समाप्त हो जायें तो कुछ समय में मानव/संसार समाप्त हो जायेगा।
लेकिन सारे मानव समाप्त हो जायें तो संसार और बेहतर हो जायेगा।
(डॉ.पी.एन.जैन)
पार्कों में कचड़ा न डाला जाए, इसलिए वहाँ देवताओं की मूर्तियाँ बैठा देते हैं।
इसी प्रकार अपने मन को अशुभ भाव रूपी कचड़े से बचाने के लिये पूज्य वस्तु का आश्रय लेकर शुभ भाव को उस पर स्थापित कर दो, जैसे किसी आकर्षक व्यक्तित्व को देखते समय उसके परमात्म-तत्त्व पर।
चिंतन
धर्मध्यान है ….
. अधर्म छोड़ना,
. अनिष्ट से दूर रहना,
. अनावश्यक का त्याग,
. सीधा चलना।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
साधु देखते हुए और भी बहुत कुछ देखते हैं,
सुनते हुये और भी बहुत कुछ सुनते हैं जैसे किसी ने “मूर्ख” कहा तो वे ‘म’ ‘ऊ’ ‘र’ ‘ख’ सुनते हैं, इन अक्षरों से न राग होगा न द्वेष।
मुनि श्री सुधासागर जी
अदृश्य वायरस यदि आपको डरा सकता है,
तो अदृश्य भगवान पर श्रद्धा आपको बचा भी सकती है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
मानव गगन चुंबी अट्टालिकायें तो बना सकता है पर सूर्य के प्रकाश को पूरी तरह रोक नहीं सकता, वह ऊपर से प्रकाशित कर जायेगा।
हाँ ! पूर्ण लाभ लेना हो तो प्रकृति के पास जाना होगा – खुले मैदान, पहाड़, नदी/समुद्र किनारे या जंगलों में, सीमेंट के जंगलों में तो अवरोधित प्रकाश ही मिलेगा।
चिंतन
बाज़ार जाओ तो सेवक बन कर लिस्ट के अनुसार खरीददारी करो, मालिक बनकर गये तो चीजें आकर्षित करेंगी।
जैसे कैमिस्ट की दुकान पर पर्चे के अनुसार दवाई लेते हो न !
स्वादिष्ट/कीमती दवा तो नहीं लेते हो !!
मुनि श्री सुधासागर जी
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