उपकार करके यदि कह दिया तो वह व्यापार हो गया ।
जब सीता जी को वनवास दिया तब उनके मन में यह भाव भी नहीं आया कि मैंने राम को वनवास में साथ दिया था ।
ज्ञानी उपकार को कर्त्तव्य मानता है ।

मुनि श्री सुधासागर जी

गुरु/भगवान को पाकर अहोभाग्य अनेकों बार माना, फिर कल्याण क्यों नहीं हुआ ?
मार्ग तो मिला पर मंज़िल नहीं, क्योंकि गुरु हमें पाकर धन्य नहीं हुये; माता-पिता, समाज, धर्म, देश धन्य नहीं हुए ।

मुनि श्री सुधासागर जी

परिस्थितियों से नहीं, परिणामों से डरो,
परिस्थितियाँ तो थोड़े समय के लिये निर्मित होती हैं,
परिणाम स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

चित्र के साथ जब “वित्त”*  जुड़ जाता है तब वह चित्र, विचित्र बन जाता है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

* जब चित्र(कला) से पैसा जुड़ जाता है, तब कला व्यवसाय बन जाती है/ अपना सौंदर्य खो देती है ।

सामने वाले के गलत क्रम में लगे बटनों को देखकर अपने बटन चैक करना, ताकि हंसी के पात्र न बन जाएं ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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