करुणा के भेद …
1. “करने वाली” – दूसरों के निमित्त से/दूसरों के लिये ।
पर निमित्त कितनी देर को मिलेंगे ?
सो करुणा भाव पराश्रित और अल्पसमय के लिये आयेंगे ।
2. “धारण करने वाली” – निरपेक्ष ।
लम्बे समय/हमेशा के लिये, मन वचन काय में, मुख्यत: अपने लिये ।

मुनि श्री अविचलसागर जी

आपके पास एक नकली नोट आ जाये तो पहले किसे चलाना चाहोगे ?
नकली… नोट/ गुरु/ शास्त्र और धर्म;
विज्ञापन और शक्ति का प्रयोग करके जो असली हैं, उन्हें चलन से बाहर कर देते हैं ।

   निर्यापक मुनि  श्री सुधासागर जी

साधुजन अपनी रक्षा खुद नहीं करते, चाहे उनके पास कितनी भी मंत्रादि शक्त्तियाँ हों क्योंकि उसमें दुश्मन की हिंसा होगी ।
उनकी रक्षा का दायित्व श्रावकों पर होता है ।

मुनि श्री सुधासागर जी

ग्वालियर में वर्षा कम होने का कारण – “नमी का कम होना” ।
इसीलिये रेगिस्तानों में बहुत कम तथा तटीय क्षेत्रों में बहुत ज्यादा बारिश होती है ।
ऐसे ही प्राय: पुण्य से पुण्य, पैसे से पैसा अर्जित होता है ।

चिंतन

दुश्मन चाहे मनुष्य रूप में हो या कर्मरूप में, वह तो अपना स्वार्थ देखेगा ही ।
आप उसे यह नहीं कह सकते कि… हे ! मुसीबत मुझे मत सताओ ।
अपनी मन, वचन, काय रूपी ढाल तथा पुरुषार्थ रूपी तलवार से वीरों की तरह Defence/Attack करना होगा ।

मुनि श्री सुधासागर जी

बच्चों को राजकुमार मानो/राजकुमारों की तरह परवरिश करो, चलेगा ।
पर राजा मत मान लेना वरना वे ख़ुद तो सैनिक ही बन पायेंगे और माता-पिता उनके सेवक !

गौरव – चिंतन

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