रिश्तों को बनाना/निभाना सीमेंट से सीखें –
पहले नरम, बाद में सख्त ।
शुरु-शुरु में पानी से नम करते रहना होता है ।
यश-बड़वानी
उत्साह का जीवन में वही Role है जो किसी भी गाड़ी के पहियों में हवा का ।
गाड़ी का इंजन चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों ना हो, पहियों में हवा के बिना दौड़ नहीं सकती ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
शुद्ध शब्द का प्रयोग चीजों के लिये जैसे कपड़े, शरीर, भोजन ।
विशुद्ध चीजों का प्रयोग भावों के लिये ।
मुनि श्री सुधासागर जी
(Ekta)
यूँ ही नहीं आती ख़ूबसूरती रंगोली में,
अलग-अलग रंगों को एक होना पड़ता है ।
(सुरेश)
वाणी में ओज, मृदुता/माधुर्य और प्रसाद (फल) होना चाहिये, ख़ासतौर पर सल्लेखना के समय ।
मुनि श्री सुधासागर जी
नज़रिया ऐसा हो कि दरिया (नकारत्मकता) में ज़रिया (सकारात्मकता) दिखे ।
यश-बड़वानी
प्रभु का रास्ता बड़ा सीधा है और बड़ा उलझा भी….
बुद्धि से चलो तो बहुत उलझा और भक्ति से चलो तो बड़ा सीधा…
विचार से चलो तो बहुत दूर और भाव से चलो तो बहुत पास…
नज़रों से देखो तो कण-कण में और अंतर्मन से देखो तो जन-जन में..
(सुरेश)
जो गृह में स्थित हो, वह “गृहस्थ”।
गृहस्थ शब्द प्राकृत भाषा में “घरत्थ“* से आया है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
*प्रवचनसार गाथा – 291
विराम देना,,,
पूर्ण विराम देने ।।।
से बेहतर
– निःसंग बन्धु (ब्र.निलेश भैया)
2) 31 मार्च को Accounts close(पूर्ण-विराम) किये जाते हैं ।
हमारा पूर्ण-विराम किसी तारीख़ का मोहताज़ नहीं ।
सो विराम इतने लम्बे व ज्यादा न हों कि जीवन का पूर्ण-विराम जल्दी/ असमय आजाये ।
ज़िंदगी ने कुछ लेकर, तो कुछ देकर;
मुझे जीना सिखाया है….
सब तेरा नहीं है
और
सब तेरे लिए नहीं है ।
ये सबक सिखाया है ।
(अनुपम चौधरी)
आसमां में मत ढूंढ अपने सपनों को,
सपनों के लिए ज़मीं भी ज़रूरी है !
सब कुछ मिल जाए तो जीने का मज़ा ही क्या !
जीने के लिये एक कमीं भी ज़रूरी है ।
(सुरेश)
(अरुणा)
रोटी खाने से अधिक समय रोटी बनाने में लगता है,
रोटी बनाने से अधिक समय रोटी कमाने में लगता है
और
रोटी कमाने से अधिक समय उगाने में लगता है ।
अतः रोटी खुश हो कर खाएं और खा कर शुकराना ज़रूर करें… कमाने वाले का, बनाने वाले का और उगाने वाले का भी ।
(रजत जैन)
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