धन पाप/पुण्य रूप नहीं होता ।
पाप/पुण्य में उसका उपयोग, उसे पाप/पुण्य रूप बनाता है ।
मन भेद में कषाय (क्रोध, मानादि) है,
मत भेद में नहीं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
जीना है तो जीना चढ़ जाओ,
वरना जीना छोड़ दो ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(सुरेश)
उस छवि की ही चिंता की जाती है, जिसकी छाया पड़ती है, जैसे मकान, कार, शरीर आदि ।
आत्मा की छाया पड़़ती नहीं , सो हम उसकी चिंता करते नहीं !
चिंतन
फल एक बार ही स्वाद (खट्टा या मीठा) देता है,
कर्म भी एक बार फल देकर झर जाते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
तपादि के कष्ट वैसे ही हैं जैसे फोड़े को ठीक करने के लिये डाक्टर फोड़े को फोड़ता है/कष्ट होता है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
धर्म….
पाप काटने के लिये नहीं,
पाप से बचने के लिये करना चाहिए ।
दर्पण साबुत होता है तब सब उसे देख-देख कर चलते हैं,
टूट जाता है तो उससे ही बच-बच कर चलते हैं ।
दर्पण यदि आचरण के फ्रेम में जड़ जाय तो टूटने का डर ही नहीं रहेगा ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
थोड़ी वर्षा कीचड़ करती है, पूरी वर्षा सफ़़ाई ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
एकमात्र पक्षी जो बाज को चोंच मारने की हिम्मत करता है,
वह है रेवेन…
यह बाज की पीठ पर बैठता है और उसकी गर्दन पर अपनी चोंच से काटता है, पर बाज जवाब नहीं देता, न रैवेन से लड़ता है-
बाज रेवेन के साथ लड़ने में समय और ऊर्जा बर्बाद करना व्यर्थ मानता है – बाज सिर्फ अपने पंख खोलता है और आसमान में और ऊँची उड़ान भरने लगता है – उड़ान जितनी ऊँची होती जाती है,रेवेन को सांस लेने के लिए उतनी ही कठिनाई होती है,
और अंत में ऑक्सीजन की कमी के कारण रैवेन गिर कर मर जाता है – इसीलिए कभी कभी सभी लड़ाइयों का जवाब देने की आवश्यकता नहीं होती है, लोगों के तर्कों कुतर्कों या उनकी आलोचनाओं के जवाब देने की कोई आवश्यकता नहीं है बस अपना कद ऊपर उठायें,
वह स्वतः ही गिर जाएंगे……………….
(अरविंद)
4 Steps से पूर्ण गुरु-लाभ लिया जा सकता है –
1. Near
2. Hear
3. Tear
4. Fear (आदर)
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
एक बार बादलों ने हड़ताल कर दी ।
किसानों ने अपने अपने हल Pack कर दिये ।
एक किसान खेत जोतता रहा ।
बादलों ने पूछा – जब बरसात होनी ही नहीं है तो हल क्यों चला रहे हो ?
किसान – ताकि आदत बनी रहे ।
बादलों को भी चिंता हुई – कहीं हम बरसना न भूल जाय और वे बरस पड़़े ।
जिन्होंने हल Pack कर दिये थे, वे हाथ मलते रह गये ।
(डॉ. मनीष)
कर्म काटने का सरलतम उपाय – पापोदय के समय अपने कुकृतों को स्वीकारो/ प्रायश्चित लो/ आगे पुनरावृत्ति न करने का संकल्प लो ।
देखा भी गया है – जब अपराधी अपनी ग़लती स्वीकार कर लेता है तब सज़ा देने वाला Mild हो जाता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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