Tag: धर्म
धर्म/अधर्म
धर्म जब आरामतलबी की ओर बढ़ने लगता है, तब अधर्म की ओर मुँह कर लेता है । चिंतन
धर्म
धर्म की राह पर चलने वाला धर्म की फुहार से भीगना चाहिये । यदि भीग ना पाये तो कम से कम ठंड़ी ठंड़ी बयार का
धर्म में उत्साह
पहली बार टी.वी. सीरियल देखने पर मन नहीं लगता क्योंकि आप ना तो किरदारों को जानते हैं, ना कहानी । पर लगातार देखते रहने पर
धर्म
कमल खिलता है सूर्य के निमित्त से, बढ़ता है कीचड़ के निमित्त से, वही कमल यदि धर्म रूपी ड़ंठल से अलग हो जाये तो वही
धर्म/अधर्म
अधर्म = बदला लेना, धर्म = अपने आपको बदल लेना । आर्यिका श्री पूर्णमती माताजी
धर्म/गुण
फूल की खुश्बू हवा की दिशाओं में फैलती है, पर गुणवान के गुण/धर्म का प्रभाव विपरीत व्यक्तियों तथा परिस्थितियों को भी प्रभावित करता है ।
ज्ञान/धर्म
ज्ञान धर्म के लिये है, धर्म ज्ञान के लिये नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
धर्म
धर्म दो प्रकार का है – 1. उधारी का – मान्यताओं पर आधारित 2. नकदी का – अनुभवों/Practicals पर अधारित तय करें – हम कौन
विश्वास
धर्म की कुछ बातों पर विश्वास नहीं होता ! Homoeopathy पर जो लोग विश्वास नहीं करते वे भी दवा तो लेते हैं और रोग भी
धर्म और विज्ञान
विज्ञान शिक्षा है, बाह्य है, स्मृति का विषय है, धर्म साधना है, अंतरंग है, विस्मृति है । (सांसारिक अहं की विस्मृति)
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