Tag: धर्म

धर्म

धर्म, अच्छे को ग्रहण करना और अच्छा बनना । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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धर्म

धर्म की प्राचीनता से ज्यादा महत्वपूर्ण उसकी उपयोगिता है । जैसे जैन धर्म प्राचीनता के साथ साथ सर्वलोक तथा सर्वश्रेष्ठ पद पर पहुंचाता है ।

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ज्ञान और धर्म

ज्ञान पूर्ण नहीं तो धर्म को भी अपूर्ण मानें ? ज्ञान अभिव्यक्ति है इसलिये अपूर्ण, धर्म अनुभूति है इसलिये पूर्ण । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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धर्म

1. प्रणाम सबको, पर यथायोग्य 2. मैं-मैं नहीं, तू ही तू आचार्य श्री विद्यासागर जी

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धर्म

धर्म क्या है ? अधर्म का अभाव ही धर्म है । (और अधर्म को तो हम सब खूब समझते ही हैं) मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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आतंक / धर्म

आतंक धर्म कैसे हो सकता है ! क्योंकि धर्म तो आतंक को समाप्त करने के लिये होता है ।

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धर्म और धर्मात्मा

धर्म कमज़ोर नहीं कि धर्मात्मा का सहारा ले । पर धर्म के संस्कारों को फैलाने के लिये धर्मात्माओं को माध्यम बनाते हैं ।

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मंगल आशीष

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