करूणा

करुणा करने वाला अहं का पोषक भले ही ना बने,
परन्तु स्वंय को गुरू अवश्य समझने लगता है तथा लेने वाले को शिष्य ।
सुख मिलने का द्वार तो खुलता है तथा देने वाला बहिर्मुखी भी होता है,
और ऊर्ध्वगामी होने का कोई नियम नहीं है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी ( मूकमाटी )

Share this on...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

May 30, 2010

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930