कर्म-प्रकृति

जो कर्म-प्रकृतियां आगामी भव में उदय योग्य नहीं होतीं, उनका वर्तमान भव में बंध नहीं होता ।
जैसे लब्धिपर्याप्त तिर्यंच को देवगति, गत्यानुपूर्वी, नरकायु, वैक्रियक शरीर आदि का बंध नहीं होता ।

कर्मकांड़ गाथा :- 109

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