दोनों श्रुत के ज्ञाता होते हैं, पर गणधर श्रुत के रचयिता भी होते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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गणधर- – जो तीर्थंकर के पादमूल में समस्त रिद्धियें प्राप्त करके भगवान की दिव्य ध्वनि धारण करने में समर्थ हैं और लोककल्याण के लिए उस वाणी का सार द्वादशांग श्रुत के रूप में जगत को प्रदान करते हैं,ऐसे महामुनीश्वर गणधर कहलाते हैं। केवली- – चार घातिया कर्मों के क्षय से जिन्हें केवल ज्ञान प्राप्त होता है और इन्हें अरहंत भी कहते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि दोनों श्रुत के ज्ञाता होते हैं, पर गणधर श्रुत के रचयिता भी होते हैं।
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गणधर- – जो तीर्थंकर के पादमूल में समस्त रिद्धियें प्राप्त करके भगवान की दिव्य ध्वनि धारण करने में समर्थ हैं और लोककल्याण के लिए उस वाणी का सार द्वादशांग श्रुत के रूप में जगत को प्रदान करते हैं,ऐसे महामुनीश्वर गणधर कहलाते हैं। केवली- – चार घातिया कर्मों के क्षय से जिन्हें केवल ज्ञान प्राप्त होता है और इन्हें अरहंत भी कहते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि दोनों श्रुत के ज्ञाता होते हैं, पर गणधर श्रुत के रचयिता भी होते हैं।