तीर्थंकर प्रकृति

तीर्थंकर प्रकृति का बंध प्रारंभ तो मनुष्य पर्याय में ही होता है,  चौथे से सातवें गुणस्थान में ।
बाद में तीन गतियों ( तिर्यंच के अलावा ) में यह प्रकृति बंधती रहती है, आठवें गुणस्थान तक ।

कर्मकांड़ गाथा :- 93

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