परिभाषा और दोष
सम्यग्दर्शन आदि की परिभाषा 3 दोषों से रहित होनी चाहिये।
दोष….
1. अव्याप्ति : जो हमेशा/ हर परिस्थिति/क्षेत्र में न रहे जैसे गाय जो दूध देती है।
2. अतिव्याप्ति : अलक्ष्य में भी पाया जाय जैसे गाय के सींग।
3. असम्भवी : गाय मनुष्य जैसी।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
11 Responses
सम्यग्दर्शन के बिना सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र नहीं होता है । उपरोक्त कथन सत्य है कि इसकी परिभाषा तीन दोषों से रहित होती है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
Can relevance of this post be explained,please ?
परिभाषा ऐसी होनी चाहिये जिसमें इस तरह के दोष न हों।
1) “गाय जो दूध देती है”, “अव्याप्ति” ka example nahi hai right kyunki wo हमेशा/ हर परिस्थिति/क्षेत्र में valid hoga ?
2) “अलक्ष्य” ka kya meaning hai, please ?
1) गाय बिना बच्चे के/ छोटी या बूढ़ी होने पर/ भय की स्थिति में दूध नहीं देती।
2) परिभाषा किस को लक्ष्य/aim कर के कही जा रही है।
Okay.
Is context me, “अलक्ष्य” kaun hai ?
यहाँ पर लक्ष्य गाय है जिसकी परिभाषा की चर्चा हो रही है,
तो अलक्ष्य हुए अन्य जानवर/ मनुष्यादि।
In that case, “अतिव्याप्ति” ke example me, “गाय के सींग” na bolkar, kisi aur animal ke seeng jaise hiran ke, bolna chahiye ?
यहाँ दोष की चर्चा हो रही है सो गाय की परिभाषा में यदि गाय को सींग वाली कहा तो परिभाषा अतिव्यापत्ति दोष सहित हो जायेगी।
Okay.