Month: April 2024

अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग

जो संवर का आदर तथा निर्जरा की इच्छा करता है, वह आत्मरसिक अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग को जानता/ उसके निकट रहता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तिथ्य भा.–

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आत्मा / कर्म

पानी में काई होती है, तब पानी काई के रंग का दिखने लगता है। पर पानी काई नहीं हो जाता है। आत्मा में कर्म हैं।

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शुद्धि

शुद्धि अनेक प्रकार की, सिर्फ़ भाव-शुद्धि से काम सिद्ध नहीं होगा। निमित्त, द्रव्य, कर्म, नोकर्म शुद्धि भी चाहिये। लेकिन ये सब शुद्ध हों और भाव-शुद्धि

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नियंत्रण

मिट्टी का घड़ा बाहर की गर्मी को अंदर प्रवेश नहीं करने देता। मनुष्य भी तो मिट्टी से बना/ मिट्टी में ही (घड़े की तरह) मिल

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ईर्यापथ आस्रव

एक समय की स्थिति का निवर्तक ईर्यापथ कर्मबंध अनुभाग सहित है ही। इसी कारण से ईर्यापथ कर्म स्थिति और अनुभाग की अपेक्षा अल्प है। एस.के.जैन

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अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी

अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी का मतलब यह नहीं कि हर समय ज्ञान पाने में लगे रहें। ज्ञान को नायक कहा है। नायक सही दिशा में ले जाता

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कर्म

कर्म हमको घुमाता (घन-चक्कर करता) है, पर वह भी हमारे द्वारा घूमता है (कर्म अपना फल देकर दुबारा फिर-फिर बंध कर आता रहता है)। क्षु.

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चरमोत्तम – देही

चरम = अंतिम + देही = शरीर ( जैसै पांडव, गजकुमार आदि ) उत्तम → 63 शलाका पुरुष उनका भी अकाल मरण संभव है। चरम

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भगवान महावीर/ Resilience*

भगवान महावीर के जन्म-कल्याण ( जयंती ) पर शुभ कामनाएं । ……………………………………. They tried to bury us, they didn’t know we were seeds. Ekta- Pune

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मंगल आशीष

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April 25, 2024