शरीर / आत्मा

एक शिष्य ने अपने गुरूजी से पूछा – ” नष्ट होने वाले इस शरीर में, नष्ट ना होने वाली आत्मा कैसे रहती है ? ”

गुरूजी का कहा :- वत्स ! जिस तरह दूध उपयोगी तो है किन्तु एक ही दिन के लिए,
फिर वह बिगड़ जाता है ।

दूध में एक बूंद छाछ की डालने से वह दही बन जाता है,
जो फिर एक और दिन टिकता है ।

दही का मथने से उसका मक्खन बन जाता है,
यह भी एक और दिन टिकता है ।

मक्खन को उबालने से घी बनता है,
और घी कभी भी नहीं बिगड़ता है ।

जिस तरह से एक दिन में बिगड़ने वाले दूध में कभी ना बिगड़ने वाला घी छिपा होता है ।

इसी तरह से अशाश्वत शरीर में शाश्वत आत्मा रहती है ।

मानव शरीर, दूध समान
दैवीय स्मरण, छाछ समान
सेवा भाव, मक्खन समान
तथा
साधना करना घी समान होता है ।

मानव शरीर को साधना से पिघलाने पर आत्मा पवित्रता प्राप्त करती है ।

(अभिषेक-देहली)

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5 Responses

  1. Suresh chandra jain

    Yah kathan sahi hai,
    sharir & aatma ki pahichan batai hai; aatma ko pavitra banaye jane hetu sadhna ki zaroorat hai, tabhi aapka kalyan hoga.

  2. यह कथन बिलकुल सत्य है…
    शरीर के लिए हमें सोचना नहीं चाहिए, वह मिट जायेगा अपनी आत्मा की पहिचान कर लोगे एवँ भेद विज्ञान की ओर अग्रसर होकर अपना कल्याण कर सकोगे।

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