करने योग्य क्रियायें करना ही धर्म नहीं,
उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, अकार्य को ना करना ।
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यह कथन सही है कि धर्म की क़ियायें जैसे पूजा पाठ,स्वाध्याय करना ही धर्म नहीं है बल्कि अधर्म के कार्य नहीं करना भी धर्म है। अतः धर्म की संक्षेप परिभाषा अधर्म के कायँ नहीं करना ।धर्म की क़ियायें तो करना चाहिए लेकिन अधर्म के कायोँ से बचना चाहिए तभी सही धर्म होगा।
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यह कथन सही है कि धर्म की क़ियायें जैसे पूजा पाठ,स्वाध्याय करना ही धर्म नहीं है बल्कि अधर्म के कार्य नहीं करना भी धर्म है। अतः धर्म की संक्षेप परिभाषा अधर्म के कायँ नहीं करना ।धर्म की क़ियायें तो करना चाहिए लेकिन अधर्म के कायोँ से बचना चाहिए तभी सही धर्म होगा।