परिग्रह

परिग्रह संज्ञा तथा व्रत में फर्क ?

परिग्रह-संज्ञा… इच्छा है, व्रतियों के भी होती है ।
परिग्रह-व्रत… व्रतियों के ही, अणुव्रतियों के सीमा में, महाव्रतियों के किंचित भी नहीं/ तुुषमात्र भी नहीं ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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4 Responses

  1. परिग़ह—यह मेरा है, मैं इसका स्वामी हू, इस प़कार का ममत्व का भाव रखना।परिग़ह संज्ञा में धन धान्यादि के अर्जन करने की इच्छा होना होता है।
    परिग़ह-परिणाम व़त में धन धान्य आदि परिग़ह का परिणाम करने यानी उससे अधिक की इच्छा नहीं करना होता है।महाव़तियों के लिए किंचित और तुषमात्र भी नहीं होता है।अतः जीवन में परिग़ह छोड़ने के भाव होना चाहिए ताकि महाव़ति बन सकते हैं।

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