वात्सल्य / राग / मोह
राग सामने वाले को नष्ट करके भी अपना लाभ कर लेगा ।
वात्सल्य में दोनों के कल्याण का भाव ।
मुनि श्री सुधासागर जी
मोह में दोनों का अकल्याण ।
राग सामने वाले को नष्ट करके भी अपना लाभ कर लेगा ।
वात्सल्य में दोनों के कल्याण का भाव ।
मुनि श्री सुधासागर जी
मोह में दोनों का अकल्याण ।
M | T | W | T | F | S | S |
---|---|---|---|---|---|---|
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 |
22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 |
29 | 30 | 31 |
One Response
राग और मोह के बंधन के कारण आत्मा के स्वरुप को पहचानने में असमर्थ होते हैं जिसके कारण मोक्ष मार्ग के रास्ते पर नहीं चल सकते हैं।
राग—-इष्ट पदार्थो में प़ीति या हर्ष रुप परिणाम होता है।अतः राग सामने वाले को नष्ट करके अपना लाभ कर लेता है।
मोह—-जिस कर्म के उदय से हित-अहित के विवेक से रहित होता है, जिसके कारण दोनो का अकल्याण होता है।
वात्यसल में दोनो के कल्याण का भाव रहता है।