कर्मोदय को तो रोक नहीं सकते, उदीरणा को तो रोक सकते हैं ।
परोसी खीर कर्मोदय है, उस पर दाल का (मसाले वाला) छोंक उदीरणा, जो खीर के स्वाद पर छा जाता है ।
(जैसे वीतराग धर्म में जन्म कर्मोदय से, पाश्चात्य-सभ्यता से प्रभावित होना उदीरणा)
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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कर्म का मतलब जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है,यह सब उनकी क़िया या कर्म है।इसी प्रकार उदीरणा का मतलब अपक्व अर्थात अपके हुए कर्मों को पकाना होता हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि कर्मोदय को रोक नहीं सकते लेकिन उदीरणा को रोक सकते हैं। अतः जो उदाहरण दिया है कि परोसी खीर कर्मोदय है और उस पर दाल का छोक उदीरणा है जो खीर के स्वाद पर छा जाता है। अतः उसी प्रकार वीतराग धर्म में जन्म कर्मोदय से है जब की पाश्चात्य सभ्यता से प़भावित होना उदीरणा होता हैं।
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कर्म का मतलब जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है,यह सब उनकी क़िया या कर्म है।इसी प्रकार उदीरणा का मतलब अपक्व अर्थात अपके हुए कर्मों को पकाना होता हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि कर्मोदय को रोक नहीं सकते लेकिन उदीरणा को रोक सकते हैं। अतः जो उदाहरण दिया है कि परोसी खीर कर्मोदय है और उस पर दाल का छोक उदीरणा है जो खीर के स्वाद पर छा जाता है। अतः उसी प्रकार वीतराग धर्म में जन्म कर्मोदय से है जब की पाश्चात्य सभ्यता से प़भावित होना उदीरणा होता हैं।