पूर्व में जब शास्त्र नहीं थे, तब श्रावक 6 आवश्यक में स्वाध्याय कैसे करते थे ?
स्वाध्याय सिर्फ शास्त्रों से ही नहीं, श्रुत/चिंतन से भी होता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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स्वाध्याय- -आत्म हित की भावना से सत शास्त्र का वाचन करना, मनन करना या उपदेश देना होता है, अथवा आलस्य छोड़कर ज्ञान की आराधना में तत्पर रहना स्वाध्याय नाम का तप है। इसके पांच भेद है वाचना,पृच्छना, अनुप्रेक्षा,आम्नाय और धर्मोपदेश।
अतः उक्त कथन सत्य है कि पूर्व में शास्त्र नहीं थे तब श्रावक छह आवश्यक में स्वाध्याय करते थे क्योंकि स्वाध्याय सिर्फ शास्त्रो से नहीं,श्रुत और चिंतन से भी होता है।
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स्वाध्याय- -आत्म हित की भावना से सत शास्त्र का वाचन करना, मनन करना या उपदेश देना होता है, अथवा आलस्य छोड़कर ज्ञान की आराधना में तत्पर रहना स्वाध्याय नाम का तप है। इसके पांच भेद है वाचना,पृच्छना, अनुप्रेक्षा,आम्नाय और धर्मोपदेश।
अतः उक्त कथन सत्य है कि पूर्व में शास्त्र नहीं थे तब श्रावक छह आवश्यक में स्वाध्याय करते थे क्योंकि स्वाध्याय सिर्फ शास्त्रो से नहीं,श्रुत और चिंतन से भी होता है।