उत्तम मार्दव धर्म

अहंकार का न होना ही मार्दव धर्म है ।

अहंकार रूपी पर्वत से जब नदी नीचे उतरती है तभी शांति के सागर में मिलकर विराट रूप धारण कर पाती है।

अहंकार …
क्या ?…. मैं कुछ हूँ, बड़ा या छोटा ।
जन्मता ?…अज्ञान से ।
पुष्ट ?…..आत्ममुग्धता से ।
नियंत्रित ?..जीवन के सत्य को जानने से…
1) मैं अन्य प्राणियों जैसी ही आत्मा हूँ
2) मेरे पास सब संयोगों से है
3) अस्थायी है
4) कर्माश्रित है ।

मुनि श्री प्रमाण सागर जी

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4 Responses

  1. उपरोक्त कथन सत्य है कि अहंकार का न होना मार्दव धर्म है। अहंकार की पुष्टि तब होती है जब वह मैं करके बोलता है। जैसे मैं धनी,प़तिष्ठि या अन्य उपलब्धि जोडना अहंकार ही होता हैं।जो हीनता या दीनता है वह कल्पानाओ में रहता है।यह सब अज्ञानता है। इसके लिए अपने स्वरुप को पहिचान करना है, क्योंकि मैं शुद्व आत्मा हूं तो शाश्वत है।बाकी सब नश्वर है। अतः आत्म बोध को जगाना होगा जिससे आत्म ज्ञान होना।

  2. “आत्ममुग्धता से नियंत्रित ?” Ka kya meaning hai, please?

    1. पुष्टि ?..आत्म मुग्धता से
      नियंत्रण ?..
      अलग अलग लाइनें हैं ।
      फिर भी हर लाइन के बाद विराम लगा दिया है ।

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