हमारी खिचड़ी* इसलिये नहीं पक पा रही है क्योंकि धर्म/गुरुओं का ताप दूर से/यदाकदा दे रहे हैं ।
चिंतन
* आत्मोन्नति/ धर्म की
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उपरोक्त कथन सत्य है कि बीरबल की खिचड़ी यानी हमारी खिचड़ी इसलिए नहीं पक रही है कि धर्म और गुरुओं का ताप यानी सत्संग दूर से, यदा कदा दे रहे हैं।
अतः जीवन में धर्म और गुरुओं का सत्संग यदि हृदय में आत्मसात करेंगे तो उसका फल अवश्य मिल सकता है।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि बीरबल की खिचड़ी यानी हमारी खिचड़ी इसलिए नहीं पक रही है कि धर्म और गुरुओं का ताप यानी सत्संग दूर से, यदा कदा दे रहे हैं।
अतः जीवन में धर्म और गुरुओं का सत्संग यदि हृदय में आत्मसात करेंगे तो उसका फल अवश्य मिल सकता है।