Category: चिंतन

पर

“पर” तो संसार में भी अवांछनीय है, ये काम हो तो सकता है “पर”। परमार्थ में “पर” (दूसरे) पर उपयोग गया तो “मैं” से हटा।

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आत्मा की जाग्रतता

कैसे पता लगे कि मेरी आत्मा जाग्रत है या नहीं ? सुबह जगने आदि के लिये आत्मा को सम्बोधन करें कि मुझे इतने बजे जगा

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ध्यानस्थ

ध्यानस्थ… भौंरे को फूल पर गुनगुनाते समय पराग का स्वाद नहीं आता। जब स्वाद लेता है तब गुनगुनाता नहीं। ब्र. प्रदीप पियूष हम भी गृहस्थी

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माना

गणित में सवाल हल करते समय, “माना कि” से सवाल हल हो जाते हैं। पर जीवन में जो तुम्हारा है नहीं, उसे अपना मान-मान कर

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कांटे

कांटों का भी अपना महत्त्व होता है। यदि वे न होते तो हम कितने कीड़े मकोड़ों को कुचलते चले जाते तथा फूल भी सुरक्षित न

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ज्ञान

लौकिक जो संसार बढ़ाये। अलौकिक जो संसार घटाये। (धर्म का) पारलौकिक जो संसार से परे का हो जैसे आत्मादि। चिंतन

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रसना

रसना को नागिन क्यों कहा ? इसी के चक्कर में आकर Overeating करके पेट/ सेहत में ज़हर घोलते हैं। इसी से ज़हरीले वचन निकलते हैं

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वीतरागता

आँसू चाहे खुशी के हों या दु:ख के, दृष्टि को तो धूमिल करते ही हैं। इसीलिए वीतरागता का इतना महत्व है। चिंतन

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पुण्य / पुरुषार्थ

मोबाइल की बैटरी 8% रह गयी। चार्जिंग पर लगाया फिर भी चार्जिंग घटती जा रही थी। 1% पर पहुंचकर बढ़ना शुरू हुई। स्टॉक के पुण्य

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चैंपियन

कैरम के खेल में चैंपियन वह नहीं बनता जिसका निशाना बहुत अच्छा हो। बल्कि वह बनता है जो अपनी अगली गोटी बनाना तथा दुश्मन की

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मंगल आशीष

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