अमृत कितना लेना चाहिये ?
जितना भी लें, श्रद्धा से/ आकुलता रहित/ अमृत तथा लाभकारक मान कर लें ।
चिंतन
(अरुणा)
नादानी समाप्त करना हो तो “नादान” में से “ना” हटा दो । (जो बचे यानि “दान” करो)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
घंटे में मधुर ध्वनि यों ही नहीं निकल आती !
पहले धातु तेज अग्नि में तपती है, सांचे में ढ़लती है फ़िर Fine Polish की जाती है, तब मंदिर की शोभा बढ़ाती है/मधुर स्वर से भगवान की स्तुति करती है ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
कानून वैश्यावृत्ति रोक सकता है (हालाँकि वह भी नहीं रोक पाया है),
पर हर स्त्री में माँ/बहन/बेटी, धर्म ही दिखा सकता है ।
श्री विनोबा भावे
जब तक शिक्षा का उद्देश्य नौकरी रहेगा तब तक समाज में नौकर ही पैदा होंगे, मालिक नहीं ।
मुनि श्री उत्तमसागर जी
सच बढ़े या घटे, तो सच न रहे;
झूठ की कोई इंतहा ही नहीं ।
श्री कृष्ण विहारी नूर (अरविंद)
संसार तथा परमार्थ की यात्रायें, सूक्ष्म से शुरु होकर अंत भी सूक्ष्म पर ही समाप्त होती हैं ।
जन्म/मृत्यु (एक cell से राख),
सूक्ष्म निगोदिया (जीव/कीड़े) से मोक्ष (आत्मा) तक ।
चिंतन
(सुरेश)
संसारियों से राग हमको कमज़ोर करता है,
भगवान/ गुरु से राग हमको मज़बूत करता है ।
ब्र. रेखा दीदी
इसका शब्दार्थ क्या है और जाप करने से कर्म कैसे कटते हैं ?
“ज” जन्म, “प” पाप;
जो जन्म और पाप यानि संसार को समाप्त करे ।
इष्ट-देव की जाप करने से विशुद्धता/ऊर्जा आती है, जो कर्मों को काटती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
नाली की गंदगी साफ करने, नाली/गंदगी में उतरना होता है ।
पापों की सफाई करने, पापों में (स्वीकार करना होगा कि हम पापी हैं) ।
वह भी शुरु से(जीवन के प्रारंभ से), वर्तमान की सफ़ाई से शुरूवात की तो पहले की गंदगी सड़ती रहेगी/ जीवन में बदबू आती रहेगी ।
साधु, साधुता के अयोग्य आदतों को दूर करने की साधना में लगे हैं,
पर कभी कर्मों की ऐसी गठान आ जाती है, जहाँ साधना का cutter मौथरा हो जाता है/टूट जाता है ।
सारे तीर तो किसी के भी निशाने को बेध नहीं पाते हैं न !
मुनि श्री अविचलसागर जी
पेड़ पाप नहीं करते, तो धर्मात्मा कहें ?
नहीं,
जो पाप को पाप मानकर पाप न करें, वह धर्मात्मा है ।
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