सबसे कठिन आसन है….आश्वासन,
सबसे लंबा श्वास …….विश्वास,
सबसे कठिन योग …… वियोग,
और सबसे अच्छा योग है.. सहयोग ।
(सुरेश)
सच्चाई वो दीपक है,
जिसे अगर पहाड़ की चोटी पर भी रख दो तो…
बेश़क रौश़नी कम हो,
लेकिन
दिखाई बहुत दूर से भी देता है !
(अनुपम चौधरी)
आयुर्वेद का सूत्र …
पथ्य है तो औषधि की आवश्यकता नहीं,
और
यदि पथ्य नहीं है तो भी औषधि की आवश्यकता नहीं ।
पूत कपूत तो का धन संचे, पूत सपूत तो का धन संचे ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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“दर्द” एक संकेत है कि…
*आप जिंदा हो*,
“समस्या” एक संकेत है कि….
*आप मजबूत हो,*
“प्रार्थना” एक संकेत है कि…..
*आप अकेले नहीं हो*
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(अनुपम चौधरी)
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
उम्र से “सम्मान” मिलता है,
पर
“आदर” तो केवल व्यवहार से ही मिलेगा ।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
(सुरेश)
(धर्मेन्द्र)
धन और समय का ही दान नहीं होता बल्कि पांचों इन्द्रिय के विषयों का भी होता है,
जैसे 1 घंटे को सिर्फ भगवान को ही देखूंगा ।
मुनि श्री सुधासागर जी
आस्तिक्य गुण का अर्थ यह नहीं है कि मात्र अपने अस्तित्व को ही स्वीकार करना,
बल्कि…
दुनिया में जितने पदार्थ हैं, उनको यथावत/ उसी रूप में स्वीकार करना ।
जो दूसरों में जीवत्व को देखता है, उसे ही आचार्यों ने आस्तिक कहा है अन्यथा वह नास्तिक है ।
आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज
जो स्वभाव को परिवर्तित कर दे,
जैसे शराब,
उसे दोष कहते हैं ।
द्रढ़ता अच्छे ध्येय के प्रति संकल्पित होना,
ज़िद्द अपने आग्रह के प्रति ।
दीपावली के अवसर पर घरों के बाहर ख़ूब सजावटें की गयीं,
घरों के अंदर बस एक/ दो कागज़ के फूलों की माला !
बाहर की सज़ावटों को तो घर वाले यदाकदा देखते हैं और बाहर वाले तो यदाकदा ही आते हैं । यदि हमारी सज़ावटें उनकी सज़ावटों से कम हुईं तो उनको घमंड और हमको हीनता के भावों में कारण बन जातीं हैं, उनसे अच्छी हुईं तो हमको घमंड और उनको हीन भाव ।
अतः जीवन को अंदर से सज़ाना ज़्यादा महत्वपूर्ण है ।
चिंतन
मुंबई के अतिशय(12 वर्षीय) को बड़े और मित्र अलग-अलग नाम रख-रख कर चिढ़ाते थे, उसे बहुत बुरा लगता था ।
कुछ दिन पहले वह अपनी दादी से बोला…
अब मुझे नये-नये नाम बुरे नहीं लगते, क्योंकि भगवान के भी तो 1008 नाम होते हैं । जिस दिन मेरे 1008 नाम हो जायेंगे, मैं भी भगवान बन जाउंगा ।
इसे गोबर का कीड़ा कहते हैं, ये कीड़ा सुबह उठकर गोबर की तलाश में निकलता है और दिनभर जहाँ से गोबर मिले उसका गोला बनाता रहता है।😊
शाम होने तक अच्छा ख़ासा गोबर का गोला बना लेता है। फिर इस गोबर के गोले को धक्का मारते हुए अपने बिल तक ले जाता है, बिल पर पहुंचकर उसे अहसास होता है कि गोला तो बड़ा बना लिया लेकिन बिल का छेद तो छोटा है, बहुत कोशिश के बावजूद वो गोला बिल में नहीं जा सकता।
हम सब भी गोबर के कीड़े की तरह ही हो गए हैं। सारी ज़िन्दगी चोरी, मक्कारी, चालाकी, दूसरों को बेबकूफ बनाकर धन जमा करने में लगे रहते हैं, जब आखिरी वक़्त आता है तब पता चलता है के ये सब तो साथ जा ही नहीं सकता !
(डाॅ. पी.एन.जैन)
आ.श्री विद्यासागर जी बहुत बार निवेदन करने पर भी सागर नहीं आ रहे थे ।
सुधासागर जी महाराज ब्रह्मचारी अवस्था में अन्य ब्रम्हचारियों के साथ आचार्यश्री को सागर आने के लिये निवेदन करने गये ।
आचार्यश्री – यहाँ सफेद बाल वाले आते हैं और चले जाते हैं पर काले बाल वाले आते तो हैं फिर जाते नहीं ।
उस समूह के अधिकांश ब्रम्हचारी, मुनि(श्री क्षमासागर जी आदि) बन गये हैं ।
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