शास्त्र मित्रवत पर गुरु शत्रुवत व्यवहार करते दिखते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
सफलता की ऊंचाई पर हो तो धीरज ज़रुर रखना चाहिये,
क्योंकि…
पक्षी भी जानते हैं , कि आकाश में बैठने की जगह नहीं होती।
(दिव्या)
असल में वही जीवन की चाल समझता है…
जो सफ़र में आयी धूल को गुलाल समझता है ।
(अनुपम चौधरी)
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
“चाबी” से खुला “ताला” बार बार “काम” में आता है,
और
“हथौड़े” से “खुलने” पर दुबारा काम का नहीं रहता ।
इसी तरह “संबन्धों” के ताले को “क्रोध” के “हथौड़े” से नहीं बल्कि “प्रेम” की “चाबी” से खोलें।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
(सुरेश)
घड़ी की सुईयाँ अपने नियम से चलती हैं,
इसलिए लोग घड़ी पर विश्वास करते हैं ।
आप भी नियम से चलोगे तो,
लोग आप पर भी विश्वास करेंगे ।
(सुरेश)
शरीर कभी भी पूरा पवित्र नहीं हो सकता,
फिर भी सभी इसकी पवित्रता की कोशिश करते रहते हैं !
मन पवित्र हो सकता है,
मगर अफ़सोस, कोई कोशिश नहीं करता..!
जिस पदार्थ को स्वयं जानते हैं, उस पदार्थ को भी गुरुजनों से पूछना चाहिए;
क्योंकि उनके द्वारा निश्चय को प्राप्त कराया हुआ पदार्थ परम सुख प्रदान करता है……………….. पद्मपुराण ।
(कल्पेश भाई)
धर्म पापीओं को नहीं बचाता, पाप से बचाता है ।
इसलिये पाप के उदय में और-और धर्म करें ताकि और-और पाप का उदय ना आये ।
दूसरों के अवगणों को नहीं देखना ही,
अपने भीतर के अवगुणों को फ़ेंक देना है;
और
दूसरों के गुणों को देखना ही,
एक प्रकार से अपने भीतर गुणों को पैदा करना है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
ज़िंदगी में ग़लती से कुछ ग़लत हो जाये तो घबराना मत
क्योंकि…
दूध फटने से,वही घबराते हैं…
जिन्हें पनीर बनाना नहीं आता ।
(अनुपम चौधरी)
अच्छी अच्छी नस्लें समाप्त हो रहीं हैं, पर नये नये वायरस पैदा हो रहे हैं ।
यह दर्शाता है कि हम अवनति की ओर अग्रसर हो रहे हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
क्रोध और आंधी दोनों बराबर होते हैं !
शांत होने के बाद ही पता चलता है कि कितना नुकसान हो गया है !!
(सुरेश)
बाह्य विकास करने की मनाही नहीं है, पर उसे Ultimate मत मानो ।
आंतरिक विकास बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
गतिमान का विरोध ही नहीं, अंतर-विरोध भी होता है ।
पर दृढ़त/संकल्प इन विरोधों को Stepping Stone बनाकर अपनी प्रगति को बढ़ा देते हैं।
जैसे गति के लिये Friction आवश्यक है ।
चिंतन
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