शास्त्र मित्रवत पर गुरु शत्रुवत व्यवहार करते दिखते हैं ।

मुनि श्री सुधासागर जी

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
“चाबी” से खुला “ताला” बार बार “काम” में आता है,
और
“हथौड़े” से “खुलने” पर दुबारा काम का नहीं रहता ।

इसी तरह “संबन्धों” के ताले को “क्रोध” के “हथौड़े” से नहीं बल्कि “प्रेम” की “चाबी” से खोलें।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

(सुरेश)

जिस पदार्थ को स्वयं जानते हैं, उस पदार्थ को भी गुरुजनों से पूछना चाहिए;
क्योंकि उनके द्वारा निश्चय को प्राप्त कराया हुआ पदार्थ परम सुख प्रदान करता है……………….. पद्मपुराण ।

(कल्पेश भाई)

दूसरों के अवगणों को नहीं देखना ही,
अपने भीतर के अवगुणों को फ़ेंक देना है;
और
दूसरों के गुणों को देखना ही,
एक प्रकार से अपने भीतर गुणों को पैदा करना है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

अच्छी अच्छी नस्लें समाप्त हो रहीं हैं, पर नये नये वायरस पैदा हो रहे हैं ।
यह दर्शाता है कि हम अवनति की ओर अग्रसर हो रहे हैं ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

बाह्य विकास करने की मनाही नहीं है, पर उसे Ultimate मत मानो ।
आंतरिक विकास बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी है ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

गतिमान का विरोध ही नहीं, अंतर-विरोध भी होता है ।
पर दृढ़त/संकल्प इन विरोधों को Stepping Stone बनाकर अपनी प्रगति को बढ़ा देते हैं।
जैसे गति के लिये Friction आवश्यक है ।

चिंतन

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

March 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
24252627282930
31