अपनी प्रेम करने वालों की सूची में, भगवान/ गुरु को कम से कम नीचे तो रख लो ।
Top पर तो वे अपने आप आ जायेंगे ।
चिंतन
जीवन-यात्रा… “क्या नहीं” से “क्या है” तक की ही होती है ।
प्यार पाने (प्यार तो कुत्ते से भी मिल जाता है) से इज्जत पाने तक की यात्रा है ।
(एकता – पुणे)
ज्योतिष-विज्ञान असफल हो सकता है, क्योंकि बहुत से जीवों की एक सी ग्रहदशा होती है ।
पर स्वर-विज्ञान नहीं क्योंकि वह हर व्यक्ति की विशेष होती है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
उड़ती हुई धूल को गुलाल मानना तो आसान है,
पर आंखों में फेंकी धूल को गुलाल कैसे मानें ?
यश-बड़वानी
आ.श्री विद्यासागर जी कहते हैं कि कोई धोखा दे तो उसे धोकर खा लो ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
खेती का संकल्प लेते ही विकल्प शुरू हो जाते हैं,
याने खतपतवार पहले तथा साथ-साथ उगता रहता है ।
किसान को समय-समय पर साफ सफाई करते रहना चाहिये ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
ध्यान में मन भटकता क्यों है ?
जिनका मन दिन-भर भटकता है, उनको रात में सपने बहुत आते हैं और भटकने वाले होते हैं ।
साधु जब विशेष ध्यान करते हैं तब एक दिन पहले से भोजन/ बोलना छोड़कर एकांत में रहने लगते हैं ।
भोग को मिठाई की तरह भोगोगे (स्वाद ले ले कर, खूब मात्रा में) तो दवाई खाना पड़ेगी ।
दवाई की तरह लोगो (मजबूरी/ कम मात्रा में) तो जीवन मिठाई जैसा हो जायेगा ।
अन्य दर्शनों की तरह, जैन दर्शन का एक शास्त्र क्यों नहीं ?
अन्य दर्शनों में भगवान अकेला कर्ता होता है, जैन दर्शन में हर जीव को भगवान बनने की शक्ति है/सबमें अपने अपने कर्मों के कर्ता/भोगतापने की शक्ति होती है, सो बहुत सारे शास्त्रों की आवश्यकता होती है ।
(ज्ञान भी अथाह है, एक शास्त्र में समायेगा नहीं)
मुनि श्री सुधासागर जी
ज्ञान – जानकारी देता है, आकर्षण का निमित्त बनता है ।
विज्ञान – उस ज्ञान को Analyse करके, भौतिक सुविधायें देता है ।
धर्म – उसी ज्ञान से हित/अहित की समझ देता है ।
त्याग दो प्रकार का —
1. संग्रह किये हुये को छोड़ना
2. संग्रह करना ही नहीं
बुखार से निवृत होना चाहते हो, विकार से क्यों नहीं ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी
परम्परा – परम System जो घर/समाज को ऊपर की ओर ले जाये ।
रूढ़िवादिता – जो नीचे की ओर ले जाये ।
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