खुश रहना है तो –
अपनों में रहो, सांसारिक दृष्टि से ।
अपने में रहो, आध्यात्मिक दृष्टि से ।
आपे में रहो, सामान्य दृष्टि से ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मान इतना बुरा नहीं है, जितना दूसरों का अपमान करना ।
दूसरों का सम्मान न करें चलेगा, अपने सम्मान की आकांक्षा ना रखें ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
आचार्य श्री ज्ञानसागर जी (आ. श्री विद्यासागर जी के गुरु) कहा करते थे – 2 रु. की हाँड़ी लेने से पहले ठोंक-बजा कर लेते हो,
गुरु को भी खोजें, पहचानें, पायें तब उनके हों ।
शरीर पर मैल लगने पर मक्खियाँ भिनकने लगती हैं, मैल साफ करने पर ही हटती हैं ।
विकार रूपी मैल आत्मा पर लगने पर समाज तथा ख़ुद की नज़र में थू थू होने लगती है ।
धार्मिक-क्रियाओं से ही यह मैल दूर होता है ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
जिसकी छाया पड़ती है जैसे मकान, कार, शरीर आदि, उसी की छवि की चिंता होती है ।
आत्मा की छाया नहीं पड़ती सो हम उसकी छवि की चिंता भी नहीं करते ।
चिंतन
पहले अपने आत्मविश्वास/ पुरुषार्थ से समस्याओं को निपटाओ,
न निपटे तब भगवान/ गुरु की शरण में जाना;
लेकिन वहां भी अपनी भक्ति के विश्वास पर ।
2) यदि समस्या ख़ुद निपटालो,
तब तो भगवान/ गुरु की शरण में आभार प्रकट करने ज़रूर जाना ।
मुनि श्री सुधासागर जी
उलझन सुलझाने का सरल उपाय – उलझन में “साता” का “स” लगा लो, उलझन “सुलझन” बन जायेगी ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
वृक्ष लगाना अच्छा है (धार्मिक क्रियायें),
पर उसकी छाया लेना (शांति/सुकून),
फल खाना (आत्मोन्नति),
संतति बढ़ाना (प्रभावना),
और भी अच्छा ।
आचार्य श्री वसुनंदी जी
फल एक बार ही स्वाद (खट्टा या मीठा) देता है,
कर्म भी एक बार फल देकर झर जाते हैं ।
(चाहे जैसा का तैसा/ खट्टा खा लो,
या
समता/ ज्ञान की चाशनी के साथ मीठा खाओ)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
परिंदे शुक्रगुज़ार हैं, पतझड़ के,
तिनके कहाँ से लाते, यदि सदा बहार रहती ।
यश जैन – बड़वानी
पुराने पुण्यों से खटिया मिलती है,
नये पुण्य कमाने के लिये खटिया खड़ी करनी होती है ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
आज के माँ-भक्त, हाथ पर माँ का टैटू बनवाकर, माँ से दूर चले जाते हैं ।
तप आदि के कष्ट वैसे ही हैं, जैसे फोड़े को ठीक करने के लिये डॉक्टर पहले फोड़े को फोड़ता है/कष्ट होता है ।
उपचार करा लेने पर भविष्य में सुकून/ आनंद,
न कराने पर कष्ट बढ़ता ही जाता है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
सरल बनने के दो तरीके हैं –
1. माला जपें – मुझे सरल बनना है ।
2. आसपास के लोगों को भी यही बता दें कि — मुझे सरल बनना है, आप में कुटिलता देखने पर आपको याद दिला देंगे कि आपको तो सरल बनना था न !
मुनि श्री अविचलसागर जी
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