ज्ञानीजन, कर्कशा पत्नि/दुर्जन पुत्र का नाम ही कर्म रख लेते हैं ।
पापोदय को काटने में सहजता हो जाती है ।
धन और धर्म की एक ही राशि होती है ।
धन फल है, धर्म जड़ है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
बर्फ को आग भी गरम नहीं कर सकती ।
जल पी लेने से वह शरीर रूप Solid बन जाता है;
ऐसे ही हम क्रोध को पी जायें तो सामने वाले के अपशब्द हमको गरम नहीं कर पायेंगे ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
सूर्योदय लाल होता है (राग का प्रतीक)
दोपहर तपते तपते सफेद/तेजस्वी;
राग को कम/खत्म करने के लिये तप बहुत महत्वपूर्ण है ।
सूर्यास्त फ़िर लाल (ढ़लती उम्र में प्रायः राग फ़िर से उभर आता है),
सावधान !
ये लाली अंधकार में परिवर्तित हो जाती है !!
तीर्थों/गुरुओं के पास जाते हैं तो मन सुगंधि से भर जाता है, उसे घर तक कैसे बनायें रखें ?
बाग की सुगंधि का Essence बना कर घर पर ले आते हो, जब भी घर में दुर्गंध आती है तो सूंघ लेते हो,
ऐसे ही तीर्थों की विशुद्धि/ गुरुओं की शिक्षा मन में भर लाओ, ज़रूरत पर उस विशुद्धि को महसूस करो/ उपदेशों को याद कर लो।
(Aruna)
विदेशों में तिथियाँ वहाँ के देशांतर/अक्षांशादि से निकालना चाहिये ।
पर वहां ऐसे कलैंडरादि होते नहीं हैं इसलिये वहाँ भारत की तिथि मानते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भौंरे और गोबर के कीड़े की मित्रता हो गई, भौंरा गुबरीले से मिलने गया तो उसको गोबर खाने को दिया, दुर्गंध सहनी पड़ी ।
गुबरीला भौंरे के घर गया तो उसे फूल पर बिठा दिया, खाने को सुगंधित पराग ।
माली उसे प्रभु चरणों में पहुँचा दिया ।
लोहे पर जंग ना लगने देने का उपाय –
उपयोग
जैसे हथौड़ा/चाकू/रेलपटरी/सुई यदि उपयोग में न आयें तो उन पर जंग लग जाती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
अपने दु:खों से दुखी होना वेदना, पाप-बंध;
दूसरों के दु:खों से दुखी होना संवेदना, पुण्य-बंध ।
कामना में इच्छा/आग्रह है, पूरी ना होने पर दल बदलते रहते हैं;
प्रार्थना में ना इच्छा है, न उसके पूर्ण होने का भाव और ना ही दलबदल;
प्रार्थना करते समय कामनायें समाप्त हो जाती हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
बरसे बादल वहाँ वहाँ, थे सागर जहाँ जहाँ ।
हवाओं का क्या दोष ?
फ़रमान था, ऊपर वाले का ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सम्बंध बनाना जैसे मिट्टी पर मिट्टी लिखना,
सम्बंध निभाना जैसे पानी पर पानी लिखना ।
या कहें –
बनाना जैसे मिट्टी में पानी मिलाना,
निभाना जैसे मिट्टी में पानी बनाये रखना ।
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