धार्मिक-क्रियाओं की सार्थकता तभी है जब स्वयं को पहचान जाओ, वरना धर्म कर किसके लिये रहे हो !

पत्नी का तो जीवन भर का साथ है, माँ तो थोड़े दिन की, खुश किसे रखें ?

माँ का आशीर्वाद तो जीवन भर का है, पत्नी को तो आशीर्वाद देने का ह़क ही नहीं है ।

मुनि श्री सुधासागर जी

जो अपने कल्याण में लगा हुआ है, वह दूसरों का अकल्याण कर ही नहीं सकता ।
क्योंकि दूसरे के अकल्याण के भाव आने से पहले अपना अकल्याण हो ही जायेगा ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

सुख की चाहना में कोई बुराई नहीं है, पर दु:ख की राह पर चलते हुये, सुख की चाह में विसंगति है ।
ऐसे सुख की चाहना में बुराई है जिससे औरों को दु:ख होता हो/ या जिसका अंत खुद के लिये दुखमय हो, जैसे बच्चों के द्वारा मिट्टी खाने या बड़ों के द्वारा शराब पीने की चाहना ।

समर्पित इच्छाओं को श्रद्धेय के चरनों में समर्पित करता है, ज़िद्दी इच्छाओं की पूर्ती श्रद्धेय से कराना चाहता है, अपने जीवन को रद्दी बना देता है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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April 8, 2022

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