कहते हैं – कैंचुली उतारने से सर्प विषहीन हो जाता है, हालाँकि विष तो दांतों में होता है ।
वैभव में पाप नहीं है, पर वैभव छोड़ने पर हम पाप मुक्त हो जाते हैं ।

आचार्य श्री वसुनंदी जी

1. गुरु ने सुंदर खरगोश दिया, रास्ते में ठगों के बार-बार पिल्ला कहने पर छोड़ दिया ।
2. दुर्योधन की माँ ने कहा वस्त्र उतार कर मेरे सामने आ, दुश्मन के खेमे के श्री कृष्ण के कहने से पत्ते लगा लिये, मृत्यु का कारण बना ।

हम गुरु/माँ को मानते तो हैं, पर उनकी नहीं मानते हैं ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

धर्म का प्रवाह बहुत महत्वपूर्ण है,
पर
यदि उपयोग नहीं किया तो वह बह जायेगा ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

भोजन दो तरह से –
पथ्य रूप = ये खाना/ये नहीं खाना,
स्वभाव रूप = स्वस्थ अवस्था में, आनंद आता है ।

इसी तरह –
धर्म औषधी रूप = दु:ख में किया गया,
आनंद रूप = सुख में किया गया, यदि आनंद-रूप करोगे तो औषधि नहीं लेना पड़ेगी ।

गृहस्थ को भी भोजन माँग कर नहीं खाना चाहिये,
ना ही परोसी हुई के अलावा माँगना चाहिये ।
अन्य कारणों के अलावा यह स्वाभिमान का भी विषय है, उज्जवल भविष्य का द्योतक है ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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